भंग ....हाँ हैं मेरे कुछ अंग ,पर फिर भी सबल ,सक्षम हूँ। भंग ....हाँ हैं मेरे कुछ अंग ,पर फिर भी सबल ,सक्षम हूँ।
खुली अदालत में सज़ा देनी चाहिए…. समाज के कलंक ये साफ़ होना चाहिए। खुली अदालत में सज़ा देनी चाहिए…. समाज के कलंक ये साफ़ होना चाहिए।