अल्फाज मेरे
अल्फाज मेरे
उन अक्सों मे डूबे अल्फाजों को समझा दो
के कितना मुश्किल है उन्हे बयाँ कर पाना...
तुम एक ही तो सहारा हो मेरी खामोशी के
तो क्यों ही तुम्हे उस बेवफा पे लुटाना...
मैने शब से चुरा कर नशा
उनके आंखों से जाम ये पिया है...
वो पागल समझ कर हंसती है मुझ पे
उन्हे कैसे बताये ये पागलपन उन्होने ही तो दिया है...
.मैने छुपाया रखा है लफ़्ज़ों को
जो मेरे जज्बात हैं
लफ्ज होकर बयाँ ना कर पाऊं
एसे मेरे हालात हैं।
