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Rajat Mishra

Inspirational

4  

Rajat Mishra

Inspirational

अकेला दीपक

अकेला दीपक

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832


एक अकेले दीपक तुमने

किसे चुनौती दे डाली

अपनी लौ को माप ज़रा लो

यह देखो सूरज की लाली

इतना क्या इतराना खुद पर

खुद के भाषण खुद की ताली

वह तो खुद सम्राट चमक का,

तुमने देखी रातें खाली


सूरज का गुणगान करें क्या

जग में उससे ही खुशहाली

फल से पेड़ भरे पूरे हों

या फूलों से झुकती डाली

ना उसने फ़र्क पहचाना

ना कभी उसने भेद किया

एक समान प्रकाश बिखरा था,

एक समान ही स्वेद किया

 

सूर्य पालक है ईश समान,

उसने सबको सबल रखा

और कभी विश्राम किया तो,

भेज दिया एक धवल सखा

चाँद चमकता सूर्य किरण से,

घनी रात में भोर किया

तुमने तीर कौन सा मारा,

बस एक द्वार अंजोर किया

 

सहम गया था इतना कुछ सुन,

दीपक कुछ क्षण खड़ा रहा

बोल नहीं फुट थे जल्दी

पर मन ही मन अड़ा रहा

 

कह दो रवि से नहीं चुनौती,

नहीं शक्ति का झंकारा

नहीं माँगता खुद की सत्ता

नहीं राज्य का बँटवारा

 

प्रभुत्व है उसका ओजस

जग में उससे ही उजियारा

पर तेजस के दंभ में उसने,

देखा कभी नहीं अंधियारा

भूल गया क्या आने से रवि के

छुप जाता है भले अंधेरा

पर ये अंत नहीं है उसका,

चिर निश हो या सुखद सबेरा

 

भले दमकता दिवस उसी से

भले उसी से रात चले

किसी वृद्ध की रिसती कोठरी

में केवल मेरी बात चले

 

वह भेद ना करे! करना सीखे

अंतिम व्यक्ति हित मरना सीखे

बंद कोठरी के अंधियारे से

भी तो थोड़ा लड़ना सीखे

 

मुझे पता है मेरे नीचे

सदा रहेगा अंधियारा

लेकिन मैने कितने पथिकों को

अंध कूप से निडर उबारा

नहीं डरेगा चोर चाँद से

दस्यु पर नहीं कहर पड़े

मैं ही हूँ वह आख़िरी रक्षक

जो इनसे हर पहर लड़े

 

हाथ बढ़ाना सीखे मुझसे

डगमग पथ पर राही को

फ़िक्र ज़रा पिछड़ों की कर ले

परे हटा वाह-वाही को

जिन पर नहीं सूर्य का वरद

जिन पर नहीं चाँद की छाया

अभागे, अछूत, पतित मनुजों पर,

मैने तो सर्वस्व लूटाया

 

वह ही ईश्वर बना रहे

मैं हाथ जोड़कर याद करूँ

अमावस को शशि छिप जाए तो,

मैं ही अचल अपवाद करूँ

 

ना जिसने सूर्य ही देखा

जिसने कभी चाँद ना भोगा

तुम ही सोचो उसके जीवन में

कितना घनघोर अंधेरा होगा

मैं ऐसों के लिए बना हूँ

कौड़ी मोल बिक जाता हूँ

रोज़ उसे विश्राम भले हो

मैं कार्य ख़तम, मिट जाता हूँ

मंदिर- कोठे, महल-झोपड़ी

सबसे हिल- मिल जाता हूँ

मिट्टी से ही जन्म हुआ है

मिट्टी में मिल जाता हूँ

 

साधन बौने, परिधि छोटी

पर नहीं कार्य कोई छोटा है

मुझसे जितना हो सके उजाला

उतना मरते तक होता है

हां मरने से क्षण भर पहले

मैं और तेज़ जल जाता हूँ

शायद मिटा लूँ तम एक बार में

बस यही सोच ढल जाता हूँ

 

याद रखो सूरज ढलने पर

मैं ही खोजा जाता हूँ

और जब खुद बुझ जाऊँ तब भी

घी-तेल उड़ेला जाता हूँ

 

जब सभी ख़त्म हो जायें तो

मैं मनुष्यता की आस अमर

भीषण से भीषण तम में भी

मैं उजियारे का दास अमर



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