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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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अजनबी चेहरे

अजनबी चेहरे

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अज़नबी चेहरे।

दिल के सुनहरे।

छिपे हों जिनमें।

राज़ कई गहरे।


नज़रों से नज़रों

में परखते हैं।

अनसुनी अनदेखी

भाव भंगिमाएं,

अदाओं से अपनी

बहुत कुछ कहते हैं।


रोजमर्रा की राहों में

अक्सर ये मिल जाते हैं।

ये अजनबी चेहरे।

दिल के सुनहरे।

रोशन जहां कर जाते हैं।


झुकती पलकें,

कभी रह रह के।

बेसुध बेअदब

हो जाते हैं।

वे अक्सर

दिल को भाते हैं।


कुछ यादें दे जाते हैं।

जो दिल के करीब

हो जाते हैं।

लाख उनको याद करो

वे फिर नज़र नहीं आते हैं।

वे फिर नज़र नहीं आते हैं।


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