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कवि हरि शंकर गोयल

Romance

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कवि हरि शंकर गोयल

Romance

ऐसे ना डराया करो

ऐसे ना डराया करो

1 min
344


सुनो प्रिये 

बहुत डरते हैं हम 

तुम्हारे इन काले काले केशों से 

जो काले नाग से लगते हैं 

ये हरदम मेरी ओर ही तकते हैं 

ना जाने कब डस लें निगोड़े 

इसलिए पास आने से 

डरते हैं हम थोड़े थोड़े । 


और तुम्हारी इन नीली नीली

नशीली आंखों से भी डरते हैं  

बहुत कातिलाना नजर है तुम्हारी 

तुम्हें क्या बतायें कि 

अब क्या हालत हो गई है हमारी ? 

हरदम नजरों में रहतीं हैं 

ना जीने देती हैं 

और ना मरने देती हैं ।


लाल सुर्ख होंठों से भी 

हमें बहुत डर लगता है 

इनको देखकर ही हमारा 

हलक सूखने लगता है 

प्यास बढ़ाकर तड़पाते हैं ये 

अपने नजदीक बुलाते हैं ये 

कितने बेचैन रहते हैं इनके लिए हम

क्या क्या जतन करते हैं 

इन्हें पाने के लिए हम

ये तुम क्या जानो ? 

तुम तो बस , आग लगाना जानती हो 

मगर , उस आग में तो हम ही जलते हैं न ।


और तुम्हारी मोरनी सी चाल !

पूरे शहर में कत्लेआम हो रहा है 

तुम्हें पाने के लिए 

हर कोई बावला हो रहा है । 

मुझे बहुत डर लग रहा है 

कि कोई तुम्हें छीन कर ना ले जाए 

और ज़िंदगी भर की दर्दे जुदाई 

कहीं मुझे सौगात में ना दे जाए ?


इतना क्यों डराती हो 

ऐसे क्यों तरसाती हो 

कभी नर्मो नाजुक बांहों का हार 

पहना दो ना हमें , ऐ हसीना 

यूं हलाल कर करके 

क्यों हमें मरवाती हो ? 



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