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अब वहाँ कोई और रहता है

अब वहाँ कोई और रहता है

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कल रात देखा एक सपना

अचकचाहट में खुली आंख,

खुद को बहुत डरा, सहमा पाया।


आलम यह था कि

अगले 15 मिनट सचेत होने में लगे !

था एक कमरा,

जहां बहुत संभाल के रखे थे

मेरे सपने, मेरे अरमान

और मेरी किताबें,

कल जब उस कमरे में गया तो,

अलग - सा था माहौल,

चाभी नही लग रही थी मेरी

लेकिन दरवाज़ा था खुला हुआ

अटकाया हुआ था

कुछ कपड़ों से,

झटका दे कर जो खोला,

दंग रह गया मैं !


सब अलग था,

पूरा कमरा खाली,

यहां तक कि किताबों वाली रैक पे भी

अब कुछ नहीं था,

मानो कल ही हुआ था पेंट

और आज ही हुई थी सफ़ाई।


पीछे मुड़ कर देखा तो

कोई और था वहां।

मैं - कौन हो तुम और

कहां है मेरा समान ?


वो - पुराने सामान की कोई ज़रूरत नही थी मुझे

ना थी ज़रूरत पुराने अरमानों की

अब यहां मैं रहता हूँ

और अब ये मेरा सपना है।


मैं - ...( गहरी साँस भरते हुए )

पर मेरी किताबें ?


वो - फेंक दी वो सब,

वैसे भी किस काम आयीं थी अब तक !


पागलों जैसे ढूंढते हुए अपनी चीज़ें

इस एहसास के साथ जागा,

कल तक थे जो मेरे सपने

अब वो किसी और के हैं,

कल तक था जो

मेरे सपनों का कमरा

अब वहाँ कोई और रहता है...!


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