अब नहीं
अब नहीं
सर्द हवाएं भी अब नहीं डराती है
आंखों में अब नहीं आंसू लाती है
जब से लगे है,मंजिल की तलाश में,
सांसे भी अब चैन से नहीं आती है
पाना है लक्ष्य एक ही है रहस्य,
जुनून में बंद चराग से रोशनी आती है
सर्द हवाएं भी अब नहीं डराती है!
चलता चल तू राही,न रुक,न झुक,
अविराम चलने से मंजिल मिल जाती है
सुख की खोज में जो दुःख न देखते है,
उनके पास से हो सफलता गुजर जाती है
वो बस ताकत ही रह जाते हैं
उनकी मंजिल कोसो दूर चली जाती है
खिलता है,सफ़लता का पुष्प वहीं पे
जिनको शूलों की चुभन सहना आती है
सर्द हवाएं भी अब नहीं डराती है
पथ के पथिक को जब मंजिल बुलाती है!