अब आगे क्या..
अब आगे क्या..
कोई क्यों आ जाता है किसी की जिंदगी में
क्यों दिखा जाता है वो कुछ अधूरे सपने
दिन रात एक कर दिया जाता है
उसको पाने की चाह में,
आँखे क्यों टटोलती रहती हैं उसे
ये कौन सा रिश्ता था?
मैंने क्यों उसे जानने की कोशिश की?
अब उनके विचार अलग हो गए हैं
उन्होंने हमें न ठुकराया है न प्यार किया है।
बस एक और सपनों की डोर में बांध दिया है
जो कभी पूरा नहीं होगा
क्या विश्वास करना गलत है?
हमने तो कभी भी उनसे कुछ नहीं छुपाया
शायद मेरे अंदर ही कोई कमी है।
उनका नज़रिया कुछ और ही देखना चाहता है,
लेकिन अब तो कुछ नहीं बचा मेरे पास अपने लिये
कहीं अकेले ही चले जाना चाहिए
किसी को बिना बताए
रोज उसकी तस्वीर इन आँखों से
कौन निकालेगा?
मुझे कोई समझाने वाला भी तो नहीं है।
हार मान लूं
या फिर प्रयास करूँ
चला जाऊं कहीं दूर
या फिर उसका इन्तजार करूँ
आँखों में उसकी तस्वीर रहने दूं
या फिर निकाल जला बैठूं
मुझे लगता है ये सब एक परीक्षा है।
थोड़ी मेहनत और करूँ
अपने दिल को कंट्रोल करूँ
उसका भी दिल मचलता होगा।
बात करने को तरसता होगा
मैं उससे न दूर हो जाऊं
आँखे अपनी न बंद कर जाऊं
उसे छोड़ कहीं दूर न हो जाऊं
देखते हैं आगे क्या होगा
मंजिल पे रौशनी होगी
या अँधेरा होगा।
