आयना
आयना


आज जब मैंने आईने को,
प्रकृति से रूबरू कराया
आयना प्रकृति का यह रूप देख घबराया
और बोला अरे! यह क्या हो गया.
इतना सन्नाटा क्यों है छाया.
आज तक तो तुम इंसानों के
बहुत से रुप देखे हैं
कभी खुशी, कभी गम.
कभी रोते हुए, कभी हंसते हुए
कभी उलझे हुए, कभी सुलझे हुए
कभी आशा, कभी निराशा
इतनी खामोशी अच्छी नहीं लगती
सभी जीव जंतु कहां है ?
आईना ने कहा कभी तो
मैं सब को आईना दिखाता था
आज एक इंसान ने मुझे आइना दिखाया
कभी मैं सब को सच बताता था
आज मैं बहुत बड़े सच से वाकिफ़ हुआ।