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H.k. Seth

Abstract

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H.k. Seth

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आत्मबोध

आत्मबोध

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मैं तो एक कण था

भ्रष्टाचार एक टन था

विश्‍वास नहीं मगर कम था

आगे बढ़ना मेरा धर्म था।

मैं तो एक


फिर इक हवा चली

बहुत सारे कणों को मेरी

तरफ मोड़ दिया

मुझे हिमालय की तरह

मजबूत जोड़ दिया

मुद्दा सिर्फ इस दुनिया से

भ्रष्टाचार मिटाना था

भ्रष्टाचार का एक टन

तोड़कर

हर एक कण को सच्चाई के

रास्ते ले जाना था।

मैं तो एक


मुझसे जागी है उम्मीदें सबकी

सबकी बातों को निभाता था

नए रास्तों पर चलकर

सच्चाई को बढ़ाता था

नन्हें से छोटे बालक के दो

शब्द थे मेरे लिए

सत्य, अहिंसा को मुझे अब

बचाना था।

मैं तो एक


टूटना टन का इतना

आसान नहीं था

मेरे पास भी कोई ऐसा

सामान नहीं था।

मैं सत्य को झूठ से

टकराता चला गया

मेरा तो ये धर्म था,

जितेंगे हम मेरा

यही प्रण था।

मैं तो एक


कभी-कभी घबरा जाता था

पानी आँखों में आ जाता था

तब आकाश को जब देखता था

शायद वहाँ कोई देवता था

फिर वो कहा करता था

एक दिन सभी यहाँ आएँगे

ये टन छोटे-छोटे कणों में

बदल जायेंगे

तो फिर घबराना किस बात का

ये तो सृष्टी का ही एक चलन था

मैं तो एक कण था।



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