सौ साल की गुड़िया
सौ साल की गुड़िया
मेरा नाम है गुड़िया मैं हूं
सौ साल की बुढ़िया
बचपन में सब मुझे गले लगाते थे
मेरी डुमक-डुमक चाल पर इतराते थे
मुझे लोरी बिन चाहे ही सुनाते थे
अब मैं जहाँ बैठ जाती हूँ।
उस जगह को भी, बिन साफ
किए लोग अब बैठते नहीं
मुझसे कूब के कारण अब
चला नहीं जाता
इस बात को लोग अब सहते नहीं
सबकी दुलारी थी जो वह इक गुड़िया
अब किस्मत की मारी है ये बुढ़िया
मेरा नाम है गुड़िया मैं हूँ
पहले मैं ही दिलों की रानी थी
मुझसे ही होती सबकी कहानी थी
अब देख कर मुझ को लोग मुँह फेर लेते है
अपने ही नहीं पराए भी मज़ा लेते है
जो सुंदर सलोनी प्यारी थी गुड़िया
अब झूरियों के बोझ से भारी है ये बुढ़िया
मेरा नाम है गुड़िया मैं हूँ
जो माँ-बाप की बहुत दुलारी थी
न जाने प्यार से किस-किस की
किस्मत सवारी थी
मैं उस वक्त की जानी मानी थी
अब उस पल को याद करना
शायद बेमानी थी
सुंदर शरीर से फली-फूली थी
वह गुड़िया
दर्द से धूली हुई है ये बुढ़िया
मेरा नाम है गुड़िया मैं हूँ
अब हर दम अकेली होती हूँ
अपने उस चरित्र को याद करती हूँ
जो तमाम उम्र निभाया है
वो ही मेरे जीवन में फरियाद
बनकर आया है
न सताना कभी किसी को न
जाने कब वक्त निकल जाएँ
एक दिन वक्त सबका बढ़ा होगा
ऐसा न हो सौ साल की बुढ़िया
तुम्हारे चेहरे पर भी मुस्काए
मेरा नाम है गुड़िया मैं हूँ
