आशाएँ
आशाएँ
अंधकार अब छँट रहा
ज्ञान की सुबह है आई।
मन की अब तू आँखे खोल
नए पथ पर अब तो बढ़कर देख।
क्या खोया और क्या पाया
ये कल की बीती बातें हैं।
नयें उमंगे,नई जोश है
मन अडिग हुआ मतवाला है।
अंधियारी काली रातों में
हताश कहीं ,गुम हो जाता मैं।
आशाएँ ले, नई किरणें है आई
नई सोच का उजाला है।
मन के खोखलेपन को अब
ना मंज़िल की रुकावट बनने दे।
उजाला जो फैला चारों ओर
खुली आँखों से तो जी भर देख ले।