STORYMIRROR

ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

Abstract

आसान नहीं है

आसान नहीं है

1 min
6

मुझे चाहना इतना भी आसान नहीं हैं,

ज़िद्दी हूं बात बात पर लड़ती हूं,

बात मेरे अपनों पर आ जाएं तो डरतीं भी हूं,

कोई क़दम ऐसे हीं नहीं उठा लेती हूं,

पहले मैं अपने घर वालों कि जगह ख़ुद को रख कर देखतीं हूं,,,


मैं हर तकलीफ़ ख़ुद तक रख सकतीं हूं पर

अपने परिवार वालों को तुमको तकलीफ़ में देख नहीं सकतीं,

हा यें सच है मैं पोजेसिव हूं

मैं तुम्हारे हिस्से का प्यार हर किसी में बांट नहीं सकतीं हूं,,,


मेरी दुनिया बहुत छोटी सी मेरा परिवार और तुम इनके अलावा कोई नहीं,

छोटी-छोटी बातों पर रो दिया करतीं हूं,

अपनों को पहले हीं खो दिया हैं जो है उन्हें खोना नहीं चाहती हूं,


जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करतीं हूं और

जिस पर हैं फ़िर भी भरोसा टूट जाने से डरतीं हूं,,

छोटी-छोटी बातों से ख़ुश हो जाती हूं

और दुःखी भी मैं बातों को दिल से लगा लेती हूं,,

मैं मेरी खुशियां बाद में देखती हूं पहले

अपनों कि खुशियां और जिम्मेदारी देखतीं हूं,,,


मोहब्बत दिल में बहुत हैं जताती नहीं हूं,,,

दूर से तुम्हें क्या लग रहा हैं मुझे नहीं पता,,,

पर पास जब आओ गे तों पता चलेगा मेरा दिल बैमान नहीं हैं,


मुझे चाहना इतना भी आसान नहीं हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract