आओ कोई बात करें
आओ कोई बात करें
पहले-पहल जब तुम मुझे
कुछ ख़ामोश-से दिखे,
तो सच है कि मैंने कई सवाल किए,
और जब तुमने जवाब छिपाने चाहे,
तो मैंने भी कई ख़्याल बुन लिए।
तुम और चुप....और चुप होते गए,
अपनी किसी दुनिया में खोते गए।
कहना-सुनना और बताना छोड़ दिया,
रूठना, मानना और मनाना छोड़ दिया।
मैं सवाल दागते-दागते थक गई,
पर तुम भागते-भागते ना थके।
और अब ये आलम है,
कि तुम भी चुप हो और मैं भी,
बातें उबल रही हैं ज़ेहन में
मगर ज़ुबान पर ताले पड़े हैं।
हम साथ हैं, पास हैं, कहने को लेकिन
एक-दूसरे बहुत दूर हो गए हैं।
बंद पिंजरे में पंछी का
और बंद कमरे में इंसान का,
दम घुटता है।
उसी तरह मन के पिंजरे में,
बातों के पंछी,
अकुला रहे हैं, घबरा रहे हैं,
छटपटा रहे हैं,
पर कोई उन्हें आज़ाद नहीं करता,
ना तुम, ना मैं।
आओ !.इन पंछियों को
कैद से आज़ाद करें,
बहुत दिन हुए,
दिल से दिल मिले,
बहुत दिन हुए,
गिले-शिकवे किए।
चलो ! हम आज
एक नई शुरुआत करें
आओ ! मिलकर बैठें,
आओ ! कोई बात करें।
