आँतर राष्टीय महिला दिवस...
आँतर राष्टीय महिला दिवस...
दुनिया के लोगों मैं बीती हुई पल हूँ ।
चल रही वर्तमान हूँ,आने वाला भविष्य हूँ।
मुझे सुन शको तो सुन लो!
मैँ एक पहली हूँ,शायरो की शायरी,
कविओ की कविता हूँ,दिल के जज्बात् हूँ।
मुझे शब्दों मैं सुन शको तो सुन लो !
बेटीयाँ तो कुदरत की दैन होती है,
न जाने क्यों जन्म से पहेले मारी जाती है।
हे कुदरत तुने तो बेटा और बेटी निर्माण मैं,
कोई अंतर नहीं किया,तो जीने का हक
मुझसे ही क्यूँ छीना जा रहा है,
है कुदरत मेरी ए आवाज़ तुम
सुन शको हो तो सुन लो !
दुर्गाष्टमी के दिन शेरावाली को पूजकर,
दुवा मांगते हो, पर मुझे गर्भ मैं ही मारकर,
शेरावाली को अपनी भक्ति का प्रमाण दे चुके हो,
गर्भ घारण करनेवाली मां होती है,
मुझे को गर्भ मैं मार डालोगे तो
अपने बेटे की शादी के लिए बेटी कहाँ से लाएगे
अपना वंश आगे केसै बढाँओगे
मेरा ए मेसेज समाज के, कुछ ठेकेदारों के लिए,
सुन शको तो सुन लो !
गर्भ मैं तडपकर दम तोड़ने वाली बेटी की चिख हूँ।
ए दरिंदों सुधर जावों,अभी समय है।
जिस घरों मैं बेटी या औरतों आँसु बहाएँ
इसकी पूजा शेरावाली भी कबुल नहीं करती।
गर्भ में मर रही बेटी की बात सुन शको तो सुन लो !
