आखिर कब आओगे
आखिर कब आओगे
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एक पाती सैनिक और उसकी
पत्नी की अधूरी दास्तान
आखिर कब आओगे?
अधूरी है अधरों की प्यास
पी मिलन की आस।
आखिर कब आओगे।
बीत चुका है अँधड़ों का
उत्पात
शुरू हो चुकी है सावन
की रिमझिम बरसात
आखिर कब।
पी बसत हो दूर-सुदूर
तुम बिन सूना मांग का सिंदूर
आखिर कब।
अधूरी हैं बातें, अधूरी रातें
अधूरी ही रह गई मिलन की
दो चार मुलाकातें
आखिर कब।
पिया भेजो हो पैगाम
मैं तो सीमा का जवान
आखिर कब।
भूला मैं परिवार,
माँ-बाप भगवान
प्रेयसी के आलिंगन में
समाया जहान
आखिर कब।
वतन का मैं पूत, इसकी
रक्षा का जिम्मा उठाया है
मंगलसूत्र, सिंदूर, टीका
सब इसी की मांग में
सजाया है
आखिर कब।
तुम हो मेरे बिन, घर
की फौलाद
न करो मनुहार,
बार-बार फरियाद
आखिर कब।
नज़ाकत भरी अदाओं से
लुभाया न करो
कठिन डगर में लक्ष्य से
भटकाया न करो
आखिर कब।
न कोई चिट्ठी, न कोई संदेश
दुर्लभ क्षेत्र में मिला माँ की
रक्षा का आदेश
आखिर कब।
तिरंगे में लिपटे, पिया का जी
भर के कर लो दीदार
खत्म हुआ पी मिलन का
लंबा इंतजार
आखिर कब।