STORYMIRROR

मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract Tragedy Classics

4.4  

मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract Tragedy Classics

आजकल

आजकल

1 min
656


तुम्हैं रिश्तों का पता नहीं है आजकल।

पर ये भी कोई ख़ता नहीं है आजकल।।

जहन में तुम ही तुम हो ये अलग बात है।

अलग होंना भी सज़ा नहीं हैआजकल।।


रात है, नशा है, पर खफा खफा हो तुम।

जीत है, प्रसाद है,तब दफ़ा दफा हो तुम

समझ में आ गया जहन में मेरे अच्छे से।

दिल देेंने में भी बफा नहीं है आजकल।।

पर ये भी कोई ख़ता नहीं है आजकल।।


रीत है, प्रीत है, तब नफ़ा नफ़ा हो तुम ।

हो खाली तो मवाली सज़ा सज़ा होतुम।

जान गए हैं व्यवहार हम भी तुम्हारे यारो

दिल्लगी भी तो ख़ता नहीं हैआजकल।।

पर ये भी कोई ख़ता नहीं है आजकल।।


रात पूनम या अमावस की हो फर्कक्या ?

बात प्यार या अदावत की हो फर्क क्या ?

जान गए हैं बदलती नीयत तुुम्हारी यारो

हम सँभल गए ,पता नहीं है आजकल।।

पर ये भी कोई ख़ता नहीं है आजकल।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract