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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

5  

Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

आज़ाद  सुबह

आज़ाद  सुबह

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उस भूमि में जहाँ नदियाँ थीं गुनगुनाती,

प्राचीन मंदिरों से शंख ध्वनि थी आती।


स्वप्न में करती आलंगन आज़ादी थी,

गुलामी थी भारी, अंग्रेज़ों ने लादी थी।


सोने के खेतों में उगते थे कांटों के फल,

पुकार न्याय की, पूरी तरह थी निष्फल।


धरती पर चमकते थे आसूं संग खून के कतरे,

बहन, बेटी, बच्चों पर भी मंडराते थे खतरे।


रोशन हो देश आज़ादी से इसलिए, कितनों ने है दर्द सहा,

कोड़ों की मारों से भी जाने कितना सारा खून बहा।


जितने याद हैं वे मतवाले, उतनों ही को हम भूले,

नमन करो इक बार दिल से, जो हँस कर फांसी पे झूले।


आज जब भारत में हमारे, उगता है सूरज आज़ाद,

क्या कीमत है उस सूरज की, भूलो तुम ना दशकों बाद।


देश के इस सूर्य को, जिसने, देखा था वो स्वप्न पवित्र,

आओ हम भी डूबे उसमें, बने हमारा भी वही चरित्र।


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