आज शहर में गजब की शरारत हो गई
आज शहर में गजब की शरारत हो गई
आज शहर में गजब की शरारत हो गई।
मरण ने जन्म से जुगलबंदी की तो,
जिंदगी की हिफाज़त हो गई।।
नफरत ने मुहब्बत को डराया, धमकाया,
खूब परेशान किया।
मुहब्बत ने भी मुहब्बत में जान देने
का ऐलान किया।
साथियों, तब से नफरत को भी मुहब्बत से
मुहब्बत हो गई।
आज शहर में गजब की शरारत हो गई।।
झूठ हमेशा से सच को फंसाता आ रहा है।
अपने मकड़जाल में धंसाता आ रहा है।
मगर वक्त का कमाल देखिए,
आज जीतने के लिए,
झूठ को भी सच की जरूरत हो गई।
आज शहर में गजब की शरारत हो गई।।
समंदर खुद के समंदर होने पर इतराता रहा,
झील, झरने, जलाशयों को भरमाता रहा।
मगर
नदी के हौसलों की उड़ान देखिए,
जो समंदर को उसे पाने की आदत हो गई।
आज शहर में गजब की शरारत हो गई।।
जो आज है वह कल नहीं रहेगा,
जिंदगी का फूल फिर नहीं खिलेगा।
उदास मत रहो मुस्कुराते रहो,
इतनी सी बात में जाने क्या जादू था।
जो ये पंक्ति उसकी डायरी की अमानत हो गई।
आज शहर में गजब की शरारत हो गई।।
क्या अच्छा है और क्या बुरा,
यह समझ नहीं पाता।
मुझे खुश्बुओं का शहर नहीं भाता।
जब से मुझे ज्ञात हुआ,
शून्य था, शून्य है और शून्य रहेगा।
तब से कलम ही मेरी खुदाई,
कलम ही मेरी नज़ाकत, कलम ही मेरी नफासत,
और कलम ही मेरी इबादत हो गई।
आज शहर में गजब की शरारत हो गई।