आज शाम
आज शाम
पर्वतों की आवाज़ बनकर
ये वृक्ष बोलते हैं
नदियों की धारा बनकर
ये बादल डोलते हैं
पत्तो की सरसराहट लेकर
ये पक्षी बोलते हैं
इंद्रधनुषी रंगों से ये
धरा देखो सज गयी।
आज दुल्हन सी शरमाये
देखो धरा भी बोलती है
सूरज को अपनी चुनरी में
आसमा आज छिपा बैठा है।
दूर से ही धानी रंग ले
आज शाम झूलती है।