STORYMIRROR

Archana Verma

Abstract

4  

Archana Verma

Abstract

आज की नारी

आज की नारी

1 min
23.6K

मैं आज की नारी हूँ

न अबला न बेचारी हूँ

कोई विशिष्ठ स्थान

न मिले चलता है


फिर भी आत्म सम्मान बना रहा ये

कामना दिल रखता है

न ही खेला कभी women कार्ड

मुश्किलें आयी हो चाहे हज़ार


फिर भी कोई मेरी आवाज़ में आवाज़

मिलाये तो अच्छा लगता है

हूँ अपने आप में सक्षम

चाँद तारे खुद हासिल कर लूं

रखूँ इतनी दम


फिर भी कोई हाथ बँटाये तो

अच्छा लगता है

हो तेज़ धूप या घनी छाँव

डरना कैसा जब घर से


निकाल लिए पांव

फिर भी कोई साथ चले तो

अच्छा लगता है

जीवन कैसा बिन परीक्षा

जहाँ लोगो ने


न की हो मेरी समीक्षा

फिर भी कोई विश्वास करे

तो अच्छा लगता है

गलत सही जो भी चुना


अपना रास्ता आप बुना

फिर भी कोई कदमो की

निगहबानी करे

तो अच्छा लगता है

अपने अधिकार भलिभाँति

जानती हूँ


क्या अच्छा क्या बुरा

पहचानती हूँ

फिर भी कोई परवाह करे तो

अच्छा लगता है

नहीं लगता मुझे अंधेरों से डर

हार जीत सबका दारोमदार

मुझ पर


फिर भी एक कान्धा हो सर रखने

तो अच्छा लगता है

मैं शौपिंग करूँ तुम बिल भरो

लड़कियों थोड़ी शर्म करो

फिर भी कोई ये अधिकार मांगे तो


अच्छा लगता है

औरत होना पहचान है मेरी

और बाजुए भी

मज़बूत है मेरी

फिर भी कोई बढ़ कर दरवाज़ा


खोले तो अच्छा लगता है

बस इतना ही है अरमान

खुद बना लूँगी मैं रोटी

कपड़ा और मकान

सिर्फ थोड़ा सम्मान मिले तो

अच्छा लगता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract