आज का भिखारी
आज का भिखारी
दर-दर भटकने पर भी
नहीं मिला खाना,
हर घर से आवाज आयी
"यहां दाेबारा नहीं आना !
भुखा हुं दाे दिनसे
काेई राेटी ताे दिला दाे,
मै भी ईन्सान हुं
प्यार से काेई निवाला ताे खिलादाे !
बुढा हाे चुका हुं अब
चला नहीं जाता,
मेरी बेबसी पर
किसी काे तरस नहीं आता !
रहता हुं फुटपाथ पर
अब यही है मेरा घर,
छांव के लिए तरसता हूँ
यहां मै दिन भर !
आंधी हाे तूफान हाे
या जब बादल गरजते है,
तब आंसुओं के सैलाब
मेरी आंखाें से बरसते हैं !
कई महीने हाे गये
मैं नहाया नहीं,
साल भरसे गंदे कपड़े
पहन रहा हूँ वही !
बीमार रहता हूँ मैं हमेशा
इस पुरी गंदगी से,
अब तंग आ गया हूँ
इस जिल्लत भरी जिंदगी से !
कभी मेरा भी घर था
थे मेरे बच्चे,
उनके साथ दिन काटना
लगते थे बड़े अच्छे !
उनके लिए दिनरात
करता था मै काम,
रहता था होठाें पर
बस लड़काें का ही नाम !
अचानक एक दिन
बीवी दुनिया छाेड़ गई,
उस दिनसे बहू-बेटाें से
दर्द मिले है कई !
घर के किसी काेने में
छुप-छुपकर राेता था,
राेटी न मिली ताे
खाली पेटही साेता था !
खुब राेना आता है
जब वाे दिन याद आता है,
जायदाद के लिए जब मुझे
घरसे निकाला जाता है !
परायाें ने नहीं
दर्द ताे अपनाें ने मुझे दिया,
उनके कारण ही ताे मैने
फुटपाथ का सहारा लिया !
कहते हाे मुझे भिखारी
क्याेंकि किस्मत का हूँ मारा,
यह किसी औरका नहीं
बदलते जमाने का दाेष है सारा !
यह किसी और का नहीं
बदलते जमाने का दाेष है सारा !