आदमी पानी का बुलबुला*
आदमी पानी का बुलबुला*
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला
धरती पर बहुत कुछ मिला
जीवन भर देखा मानव मेला
सब रहेगा यहां जाना अकेला।
कुछेक को पदों का अंहकार
समाज नहीं करता स्वीकार
पदमुक्ती पर मिलता सीला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।
आदमी अपने ही घरमें है मेहमान
ध्यान रहे किसीका ना हो नुकसान
जीते जी सबसे अपना मन मिला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।
कोई नहीं पूछता कितना जमाया
यह सच है समाज में क्या कमाया
कितने निराश्रितों का हुआ भला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।
दुनिया में विद्वता की है पहचान
उसको ही मिलता मानसन्मान
इसे प्राप्त करने में लगती कला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।
मॄत्युपरातं सबका नही होता नाम
इंसान का चरित्र आता स्वयं के काम
धन दौलत नही दिल होना खुला
आदमी है पानी का बुलबुला
जब आया बुलावा तब चला।