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रेनू जैन 'अक्स'

Inspirational

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रेनू जैन 'अक्स'

Inspirational

आ पावक तू सींच दे ज़रा

आ पावक तू सींच दे ज़रा

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नीर नयन अब बहुत हो चुके

गीत हिय में शब्द खो चुके।

सुर लहरी अभिशप्त हो गई

अनुभूति विलुप्त हो गई।


अब पीयूष न बरसे लब से

सोम स्मित न झलके नभ से।

मधु-स्रोत का क़तरा वर्जित

अब बस केवल गाज गिरेगी।


दर्प तुम्हें अपने पौरुष पर

किन्तु मैं न अबला रमणी

अब न मैं मनभावन कलिका

रूप धरूंगी अब प्रस्तर सा।


खौल रहा दावानल उर में

दहन हो गई हर मर्यादा

अब विनाश का नृत्य रचूँगी

अब होगा विध्वंस तुम्हारा।


शेष यही अब मेरी ईहा

आ पावक तू सींच दे ज़रा

एकमात्र अब अनल वृष्टि ही

शमन करेगी कोप पिपासा।।

    



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