उर से उमड़े अनन्त उर्मिल तप्त कणों की प्यास मंजूल मोती बिखराती प्रीत दोनों उर से उमड़े अनन्त उर्मिल तप्त कणों की प्यास मंजूल मोती बिखराती प्रीत दोनो...
डूब के हर शब, रोज़ ही उभरा है 'प्रभात', क्या हुआ जो तुमने तमाम रौशनियाँ बुझा दी। डूब के हर शब, रोज़ ही उभरा है 'प्रभात', क्या हुआ जो तुमने तमाम रौशनियाँ बुझा दी...
पेश है एक बार फिर एक नई कोशिश मेरी, आज तेरी ख़िदमत में पेश है एक बार फिर एक नई कोशिश मेरी, आज तेरी ख़िदमत में
अब पीयूष न बरसे लब से सोम स्मित न झलके नभ से। अब पीयूष न बरसे लब से सोम स्मित न झलके नभ से।