वजूद
वजूद


मेरे वजूद का और कोई इम्तिहान क्या लोगे,
जिन लबों पे मेरा नाम आया, वो निगाहें मुस्कुरा दी।
मैं रहूं या न रहूं, मेरी मौजूदगी हमेशा रहेगी,
पूछो उनसे जिसने ज़रा सी आहट पे पलकें बिछा दी।
यूं मेरी हस्ती को मिटा न पाओगे तुम कभी,
खामाखां ही तुमने मेरी सारी चिट्ठियाँ जला दी।
डूब के हर शब, रोज़ ही उभरा है 'प्रभात',
क्या हुआ जो तुमने तमाम रौशनियाँ बुझा दी।