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Palak Inde

Abstract Romance Tragedy

4.9  

Palak Inde

Abstract Romance Tragedy

सब्र

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आज 10 मार्च थी। स्तुति का दिल धड़क सा उठा था। 

आज 3 साल हो गए। शायद श्रवण का भी यही हाल हो।

बात आज से कई साल पुरानी है। बाहरवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद स्तुति ने जिस कॉलेज में दाखिला लिया, श्रवण उसी कॉलेज में किसी और कोर्स की पढ़ाई कर रहा था। कॉलेज में एक प्रोग्राम के दौरान दोनों की मुलाकात हुई। उस एक मुलाक़ात को ज़िन्दगी भर की याद बनने में वक़्त न लगा।

नहीं नहीं, वो मुलाक़ात प्यार भरी नहीं थी, बल्कि लड़ाई भरी थी। एक गलतफहमी की वजह से दोनों के बीच जो झगड़ा हुआ, पूरा कॉलेज उस झगड़े का गवाह बना। दोनों को झगड़ते वक्त इस बात का ज़रा भी ध्यान न रहा कि वो दोनों कहाँ खड़े हैं। अगले दिन प्रिंसिपल सर और बाकी टीचर्स से दोनों की जम कर क्लास लगी। 

झगड़ते झगड़ते नजाने कब स्तुति उसकी ओर आकर्षित होने लगी। स्तुति तो जान बूझकर उससे मिलने के बहाने ढूँढती, फिर चाहे वजह झगड़ा ही क्यों न हो। श्रवण को स्तुति फूटी आँख नहीं सुहाती थी। ऐसा नहीं था कि वह सुंदर नहीं थी। स्तुति के आते ही पूरा कॉलेज उसके पीछे दीवाना हो गया था । बस श्रवण को वो नहीं भाई। वजह थी स्तुति से हुआ उसका वो झगड़ा। स्तुति ये बात जानती थी। इसलिए उसने अपनी एकतरफा मोहब्बत को राज़ बनाकर हमेशा के लिए अपने दिल में छुपा लिया। देखते देखते कुछ वक्त बीत गया। अब तो स्तुति ने श्रवण को परेशान करना भी छोड़ दिया। उसे एहसास हो चुका था कि उसे परेशान करके वो सिर्फ नफरत हासिल कर रही थी, प्यार तो बहुत दूर की बात है।

साल पूरा होने पर फिर से कॉलेज में एक प्रोग्राम आयोजित हुआ। प्रिंसिपल सर ने इस बार ज़िम्मेदारी उन दोनों को ही सौंपी। उनके इस फैसले से सभी टीचर्स सहित वो दोनों भी हैरान थे। एक बार फिर दोनों न चाहते हुए भी एक दूसरे के सामने थे। उसी प्रोग्राम के दौरान एक भयानक हादसा हुआ। किसी ने जान बूझकर मेन हॉल में लगा झूमर श्रवण पर गिराया। स्तुति ने सही वक्त पर आकर श्रवण को बचा लिया। मगर झूमर उस पर गिर गया। सब तरफ अफरा तफरी मच गई। स्तुति को अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसकी हालत गंभीर थी।श्रवण को अब भी अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। जो लड़की उससे इतना झगड़ती थी, आज वही लड़की उसकी जान बचाने के लिए अपनी जान पर खेल गई। वह मंज़र बार बार उसे डरा रहा था।

सर्जरी के बाद जब स्तुति को लाया गया तो श्रवण का दिल किया कि वह उसके गले लग जाए। मगर स्तुति के मम्मी पापा के सामने वो ऐसा कुछ नहीं कर सकता था।जब डॉक्टर ने बताया कि वह अब खतरे से बाहर है तो उसकी जान में जान आई।

 उन्हीं दिनों स्तुति की नानीमाँ गुज़र गयी। इसी वजह से उसके मम्मी पापा अस्पताल में उसे ज़्यादा वक्त नहीं दे पा रहे थे। उनकी नामौजूदगी में श्रवण ही उसका ख्याल रखता। मन ही मन, श्रवण भी उसे चाहने लगा था।

 एक दो महीने के बाद स्तुति ने दोबारा कॉलेज जाना शुरू कर दिया। उस दिन श्रवण उसे देखकर इतना खुश हुआ कि उसकी आँखें नम हो गईं। उसने बिना देर किए स्तुति को अपने दिल की बात बता दी। स्तुति की आँखों में खुशी के आँसू छलक पड़े।

दोनों ने साथ में बहुत अच्छा वक्त बिताया। वो 2 साल कुछ पलों में ही गुज़र गए।

2 महीने बाद कॉलेज खत्म होने वाला था। अब उन दोनों को भविष्य की चिंता सताए जा रही थी। स्तुति ने तो साफ कह दिया कि जब तक वह अपने पैरों पर नहीं खड़ी होगी, वह अपने घर पर उन दोनों के बारे में बात नहीं कर सकती। श्रवण की तरफ से ऐसी कोई चिंता की बात नहीं थी। मगर अब उन दोनों को आत्मनिर्भर बनना था। सो उन्होंने एक ही शहर में अलग अलग जगह रहकर काम करने का फैसला किया। जिससे वो दूर भी नहीं होंगे और कमा भी सकेंगे। मगर स्तुति के घरवालों ने उसे किसी और शहर जाकर काम करने की इजाज़त नहीं दी। वो झगड़ा इतना बढ़ गया कि गुस्से में आकर स्तुति ने अपने और श्रवण के बारे में घर पर बता दिया। बात वहीं की वहीं- श्रवण अभी आत्मनिर्भर नहीं था। तो वो स्तुति को कैसे संभाल पाएगा। और सबसे बड़ी बात, श्रवण की जात अलग थी, और प्रेम विवाह उनके परिवार के चलन में नहीं आता। उन्हें अब समझ में आया कि स्तुति का वो एक्सीडेंट भी श्रवण को बचाते वक्त ही हुआ होगा। स्तुति के मम्मी पापा ने उसे घर पर कैद कर दिया। उधर श्रवण को आभास तो हो चुका था मगर उसने चुप रहने में समझदारी समझी। स्तुति कोई गलत कदम न उठाले, इसलिए उसके घर वालों ने एक रास्ता निकाला। उन्होंने उन दोनों के सामने कुछ शर्तें रखीं। 

1. श्रवण को अपने पैरों पर खड़ा होना होगा, वो भी बिना किसी की सहायता के।

2. स्तुति के परिवार वाले ऊँचे खानदान से हैं तो श्रवण को पहले उनकी हैसियत के बराबर कमाना होगा।

3.श्रवण और स्तुति आपस में नहीं मिलेंगे और न ही बात करेंगे।

उन दोनों को ये सब शर्तें मंज़ूर थी। घरवालों को लगा कि श्रवण इतनी जल्दी पैसे नहीं कमा पाएगा और तब तक स्तुति को बहला फुसला कर उसकी शादी अपनी ही जात में कर देंगे।

वो दिन 10 मार्च का था...जब श्रवण और स्तुति आखिरी बार मिले थे...जब उन्होंने आखिरी बार एक दूसरे को जी भर कर देखा था..आखिरी बार एक दूसरे की आवाज़ सुनी थी। श्रवण ने लौटने का वादा कर उसे अलविदा कहा। 

कुछ आहट हुई और स्तुति वर्तमान में पहुँच गई। 3 साल बीत चुके थे। ऐसा नहीं के श्रवण के जाने के बाद सब सही हुआ होगा। स्तुति के घरवालों ने बहुत ज़ोर लगाया कि वो कहीं और शादी कर ले , मगर स्तुति अपनी ज़िद पर अड़ी रही। श्रवण की तस्वीर लिए उसकी आँखें नम हो गई।

उधर श्रवण का भी हाल कुछ ऐसा ही था। उसकी आँखों के सामने से वो 6 साल एक फ़िल्म की तरह गुज़र रहे थे। स्तुति का मिलना...झगड़ना ...फिर उसकी जान बचाना और प्यार और फिर बिछड़ना। 

श्रवण को अपनी किस्मत पर हँसी आ रही थी। वो जिस इंसान के लिए यह सब कर रहा था, वह उसे देख भी नहीं सकता था और न ही मिल सकता था। वह उसका हाल तक जानने को बेचैन था। उसे बस इसी बात का डर था कि कहीं स्तुति का भरोसा उस पर से डगमगा न जाए। श्रवण दिन रात मेहनत कर रहा था कि वो उसके परिवार की हैसियत तक पहुँच सके। 

उधर, स्तुति के पापा को भी सब याद आ रहा था । उन्हें श्रवण की पल पल की खबर थी। उन्होंने स्तुति की बात सुन ली थी। जब वह श्रवण की तस्वीर से बात कर रही थी कि उसके लौटने की खबर सुनने के लिए वो कितनी बेसब्र है।

इसी बेसब्र से उन्हें एक वाक्या याद आ गया। जब स्तुति छोटी थी तो उसे हर चीज़ अपने हिसाब से उसी वक्त चाहिए होती, जब वो माँग करती। उसके पापा उससे हमेशा कहा करते कि इतनी बेसब्र होना अच्छी बात नहीं है। 

उन्हें अचरज हुआ कि क्या ये वही लड़की है जो एक पल के लिए भी सब्र नहीं रख सकती थी।

और आज भी स्तुति अपने सब्र का इम्तेहान दे रही थी।


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