Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Indar Ramchandani

Comedy Drama Romance

3.7  

Indar Ramchandani

Comedy Drama Romance

वो पाँचवी सालगिरह (अंतिम भाग )

वो पाँचवी सालगिरह (अंतिम भाग )

14 mins
15.9K




“और भाई, भाभी के लिए फाइनली कौनसा मोबाइल पसंद किया ?” दफ़्तर में घुसते ही समीर ने बड़ी बेसब्री से पूछा।

मैंने उसकी तरफ हताश भरी नज़रों से देखा और बगैर कुछ कहे अपनी कुर्सी पे आके पसर गया।

“क्या हुआ, इतना परेशान क्यूँ है ? नया सेलफोन कहीं गुम तो नहीं कर आया ?”

“यार, पूछ मत। बस इतना समझ ले कि सेलफोन वाला आइडिया केंसिल हो गया। अब कोई और सुझाव है तो बता।”

“देख राघव, सेलफोन का आइडिया मैंने इसलिए दिया था क्यूँकि तेरे पास वक़्त की कमी है। वरना मैंने कहीं पढ़ा था कि बीवी को वो तौहफा सबसे बेहतरीन लगता है जो वो खुद को ना दे सके। अब सोच कि तू भाभी को ऐसा क्या अनूठा उपहार दे सकता है जो उन्हें और कहीं ना मिल सकता।”

"अब ऐसा क्या दूँ, जो वो खुद को ना दे सके ? बच्चा ?" मैंने पूछा।

"अभी घोन्चु ! बच्चा क्या एक दिन में लेके आएगा ?"

"मज़ाक था यार। लेकिन तूने आइडिया सही दिया है। तोहफा वो दो जो इंसान खुद को ना दे सके। ये बात तूने मुझे पहले क्यूँ नहीं बोली ? बाहर से कोई तोहफा खरीदने के बजाए क्यूँ ना मैं मधु के लिए खुद कोई ऐसी चीज़ बनाऊँ जो उसे पहले किसी ने ना दी हो ?

“इससे ज़्यादा रोमांटिक तोहफा और क्या होगा ?” समीर ने थम्स-अप का संकेत दिया।

अब बस वो तोहफा क्या होगा, इसकी कल्पना करनी थी। समीर ने सच ही कहा था की मेरे पास वक़्त की कमी थी। ना सिर्फ़ अगले तीन घंटों में मुझे उस बेमिसाल उपहार का सृजन करना था बल्कि हरी साढ़ू के लिए साई इंडस्ट्रीस का कोटेशन भी तैयार करना था। गनीमत थी की कुछ देर सोचने के बाद मुझे उस नायाब तोहफ़े का आइडिया मिल गया।

हर पत्नी को यह पसंद आता है कि पति उसकी दिन-रात तारीफ करे, लेकिन तारीफ करने के मामले में, मैं थोड़ा फिसड्डी था। मैं हमेशा ही इस कशमकश में रहता हूँ, कि मेरी की गयी तारीफ कहीं सामने वाले को शैखी या चापलूसी ना लगे। इसी वजह से मधु की तारीफ किए हुए मुझे एक अरसा हो गया था। मैंने सोचा, यह मधु को सरप्राइज करने का एक बेहतरीन मौका है।

मैं पास के एक जनरल स्टोर में गया और एक ताश की गड्डी खरीद के लाया। मेरा गिफ्ट का कॉन्सेप्ट यह था कि हर कार्ड के उपर मधु की एक तस्वीर लगी हो और दूसरी तरफ मधु के बारे में कोई तारीफ लिखी हो। मैंने ताश के पहले कार्ड पे लिखा, "50 रीजन, वाई, आई लव यू !” और फिर बाकी कार्ड्स पर मधु की तस्वीरें चिपकाता गया और उसकी खूबियाँ लिखता गया। फ़ेसबुक की मेहरबानी से मधु की बचपन से लेकर जवानी तक की यादगार तस्वीरें मुझे आसानी से मिल गयीं और मधु की खूबियाँ पर तो एक ग्रंथ लिखा जा सकता है। उसके बाद का काम आसान था। मैंने सभी कार्ड्स में पनचिंग मशीन के ज़रिए छेद किया और एक लाल रिब्बन से सारे पत्ते एक क्रम में समेटता गया ताकि उसे एक छोटी सी नोटबुक का आकार मिल सके। और इस तरह ढाई घंटे की कड़ी मशक्कत और ऑफिस के कलर प्रिंटर के भरपूर दुरुपयोग के बाद मेरे निर्माण ने पूर्णता प्राप्त की, लेकिन मेरे पास फ़ुरसत से उसे निहारने का समय नहीं था।

हरी साढ़ू ने इस बीच कम से कम मुझसे चार बार साई इंडस्ट्रीस का कोटेशन माँगा था और बिडिंग का समय भी निकलता जा रहा था। गड्डी को जैसे-तैसे गिफ्ट रेप करने के बाद उसे मैने अपने टेबल के ड्रावर में छिपाया और किसी तरह अगले 15 मिनिट में टेंडर का कोटेशन तैयार करने के बाद मैं बॉस के केबिन में पहुँचा। हरी साढ़ू ने मुझे देखने के बाद अपनी घड़ी को निहारा लेकिन कुछ कहा नहीं, शायद वो अपना गुस्सा टेंडर के खुलने के बाद निकालने वाला था।

कहते हैं कि अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान और यह कहावत इस समय मुझ पर बिल्कुल सही बैठ रही थी। आनन-फानन में बनाए हुए कोटेशन के बावजूद हमें साई इंडस्ट्रीस का टेंडर मिल गया और मेरा जालिम बॉस, जो कुछ देर पहले तक शाकाल की तरह मुझे घूर रहा था, वो अचानक से मुझे संस्कारी बाबूजी आलोक नाथ की तरह आशीर्वाद देने लगा। ऑफिस से निकलने के वक़्त मैं सोच रहा था कि चलो अंत भला तो सब भला, लेकिन उस समय मुझे इस बात का इल्म कहाँ था कि इस कहानी में अभी कई और घुमाव आने बाकी थे।

घर में जैसे ही दाखिल हुआ, मधु की मधुर आवाज मेरे कानों में पड़ी, “श्लोक बेटा, किसी ने कहा था की वो आज शाम को जल्दी घर आएगा।” मधु जब भी मुझसे किसी बात पे खफा होती है तो श्लोक के जरिये ही मुझसे बात करती है।

मैने अपना लेपटॉप बैग उतारकर डाइनिंग टेबल पे रखा और श्लोक को गोदी में उठाके किचन में दाखिल हुआ, “श्लोक बेटा, मम्मी को बोलो कि किसी ने कहा था की वो पूरी कोशिश करेगा लेकिन कोई वादा नहीं किया था।” मैंने जवाब दिया।

“अरे, मुझे तो गोदी से नीचे उतारो, टीवी पे शिवा आ रहा है।” श्लोक हमारी यह नोक झोंक लगभग रोज़ सुनता था और अब उसे समझ आ रहा था कि हम दोनों उसे अपने पक्ष में शामिल करने की कोशिश करेंगे जिसमें उसे जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। वो मेरी गोदी से उतरकर वापस हॉल में जाकर कार्टून देखने लगा और अब मधु के पास सीधे मुझसे बात करने के अलावा कोई और चारा नहीं था।

“दिख रही है आपकी कोशिश…” मधु मेरा खाना थाली में परोसते हुए बोली, “रात के 9:30 बजे हैं, ये जल्दी है तो पता नहीं देर से कब आते।”

“अरे यार, क्या बताऊँ, साई इंडस्ट्रीस के टेंडर की आज बिडिंग थी। उसी में ही देर हो गयी। ख़ुशख़बरी ये है की हमें वो टेंडर मिल गया।”

“मिस्टर…” मधु ने प्याज काटना छोड़ा और मुझे छूरी दिखाते हुए बोली, “यह खुशख़बरी आपके लिए होगी, मेरे लिए नहीं। मैं तो तब खुश होती जब आप मेरे साथ नीलू चाची की ‘खुश तो तुम तब होगी जब रात के 12 बजे मैं तुम्हें सरप्राइज करूँगा।’ मैं मन ही मन बुदबुदाया। “अरे वाह, आज खाने में राजमा चावल बनाए हैं ?”

“टॉपिक चेंज करना तो कोई आपसे सीखे।” मधु खाना डाइनिंग टेबल पे परोसते हुए बोली, “ये जूते हॉल में क्यों उतारे हैं और ये लैपटॉप बैग टेबल पे क्यूँ पड़ा है ? हज़ार बार कहा है इसे अंदर केबिनेट में रखा करो। इंसान आख़िर खाएगा कहाँ ?” मधु के अंदर आज फूलनदेवी की आत्मा ने प्रवेश किया हुआ था।

“रख देता हूँ काली माता।” मैने मधु को हाथ जोड़ते हुए श्लोक को आँख मारी, “अब प्लीज़ शांत हो जाओ और मेरा नरसंहार करना बंद करो। कल हमारी शादी की पाँचवी सालगिरह है और हम बेवजह की बातों पे झगड़ रहें हैं।”

"एग्जेक्टली माई पोइंट", मधु मुझे बख्शने के मूड में बिल्कुल नहीं थी, “कल हमारी पाँचवी सालगिरह है लेकिन आपको परवाह कहाँ है ? क्यूँकि आपके हिसाब से तो हर दिन स्पेशल होता है, कल के दिन में कौनसी ख़ास बात है ? आप आज वहाँ पार्टी में होते तो आपको पता चलता की इन ख़ास दिनों की अहमियत क्या होती है। चाची की बेटी और दामाद ने कितना रोमांटिक सालसा किया था। लेकिन मेरे पति को तो यह सब नौटंकी लगती है।”

“यार, क्या हम थोड़ी देर के लिए तुम्हारी चाची और उसके दामाद के अलावा कोई और बात कर सकते हैं ?” मैं अब झुंझलाने लगा था। “और हम क्यूँ उनकी तरह अपने प्यार का ढिंढ़ोरा पीटें ? हमारे बीच प्यार है, ये साबित करने के लिए सबके सामने नाचना ज़रूरी है क्या ?”

“नहीं।” मधु ने कहा, “लेकिन प्यार है, उसे महसूस करना और कराना बहुत ज़रूरी होता है। कुछ तो आप ऐसा करो जिससे मुझे लगे कि मैं आपके लिए कोई मायने रखती हूँ, जिससे लगे कि आप उतने नीरस नहीं, जितना आप दिखावा करते हो।”

मैं और मधु कुछ पल एक-दूसरे को देखते रहे। अब मैं गिफ्ट की बात और नहीं छिपा सकता था क्यूँकि उसके अलावा इस बहस को बंद करने का और कोई तरीका नहीं था। “तुम जानना चाहती हो ना कि तुम मेरे लिए क्या मायने रखती हो ? तो फिर मेरा लेपटॉप बैग खोल के देख लो।” कहते हुए मैं उठा और अपना लेपटॉप बैग मधु के हाथों में सौंपा। मधु ने सवालिया नज़रों से मुझे देखा और बैग खोलने लगी। कुछ देर तक बैग खंगालने के बाद उसने पूछा, “क्या दिखाना चाहते हो ? इसमें तो सिर्फ़ तुम्हारा लेपटॉप, कुछ कागज़ और एक डायरी पड़ी हुई है।”

“क्या कह रही हो ? ठीक से देखो !” कहते हुए मैंने बैग मधु से छीना और खुद उसे छानने लगा, लेकिन मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी जब गिफ्ट बैग में से नदारत मिला।

अचानक मुझे याद आया कि गिफ्ट तो मैं ऑफिस डेस्क के ड्रावर में से निकलना ही भूल गया था !

“क्या हुआ ?” मधु ने पूछा, “आपको साँप क्यूँ सूंघ गया ?”

मैं हताहत सा हॉल के सोफा पर बैठ गया और अपनी लापरवाही पे खुद को मन ही मन गालियाँ देने लगा। लेकिन मधु को भी सब सच बताना ज़रूरी था।

“क्या बताऊँ मधु, आज पूरे दिन बड़ी मेहनत से तुम्हारे लिए अपने हाथों से एक तोह्फा बनाया था। सोचा था रात के 12 बजे तुम्हें सरप्राइज दूँगा। लेकिन उसे ग़लती से मेरे डेस्क की ड्रावर में ही भूल आया हूँ।”

“वाह ! और आप सोचते हो कि मैं आपकी बात मान लूँगी। अभी कुछ देर पहले तो कह रहे थे की आज सारा दिन टेंडर के पीछे लगे हुए थे।”

“अरे वो तो मैं झूठ बोल रहा था। तुम्हें बता देता तो सरप्राइज कैसे देता ?”

“या शायद अब झूठ बोल रहे हो ?” मधु बोली।

“हद करती हो मधु !” मैं चिल्लाया, “अपने इकलौते पति पर ऐसे इल्ज़ाम लगाते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती। अगर तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं है तो रूको, मैं अभी ऑफिस जाकर वो गिफ्ट लेकर आता हूँ।”

“फिल्मी डायलॉग मारना बंद करो और चुपचाप खाना खाओ। आपका ऑफिस क्या नाइट क्लब है जो रात के 10 बजे तक खुला होगा ?” मधु ने चेताया।

मैंने घड़ी की तरफ देखा। सचमुच रात के 10 बजे थे और कल रविवार था। यानी सालगिरह के दिन मेरे पास मधु को देने के लिए कुछ नहीं था। मेरी हताशा अब निराशा में बदलने लगी थी।

“तुम खाना खा लो। मुझे भूख नहीं है।” मैने मायूस होकर कहा।

“अब खाने ने आपका क्या बिगाड़ा है ? ग़लती खुद करते हो और गुस्सा खाने पर उतारते हो।”

“क्या तुम थोड़ी देर के लिए अपना विविध भारती का प्रसारण बंद करोगी !” मैंने चिङकर कहा, “जब से घर में आया हूँ तब से किसी ना किसी बात पे मुझे ताने मारती जा रही हो। समझ नहीं आता कि तुम्हें प्रोब्लम किस बात से है ? मेरे लेट आने से, हॉल में जूते उतारने से, डाइनिंग टेबल पे बैग रखने से, या फिर उस सड़े हुए फंक्शन में तुम्हारे साथ सांबा डांस ना करने से ?”

“सांबा नहीं सालसा ! डांस करना नहीं आता तो कम से कम उनके नाम तो ढंग से लिया करो। और मुझे प्रोब्लम इस बात से है की आप खुद को अभी मुझे यह नहीं पसंद, मुझे यहाँ नहीं जाना, मुझे ये नहीं खाना’, कभी आपने यह सोचा की मधु को क्या पसंद है, या मधु को किस बात से खुशी मिलती है ? अगर सिर्फ़ अपने ही बारे में सोचना था तो फिर मुझसे शादी ही क्यूँ की ?” मधु पैर पटकते हुए बेडरूम में चली गयी।

“वही तो सबसे बड़ी ग़लती हो गयी मुझसे !” मैंने पलटवार किया। मैं अपना आपा खोने ही वाला था तभी मेरी नज़र श्लोक पर पड़ी। मैने और मधु ने बहुत पहले से यह तय किया था की श्लोक के सामने छोटी-मोटी नोकझोंक ठीक है, लेकिन कभी भी झगड़ा नहीं करेंगे। लेकिन उस वक़्त मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। इससे पहले कि बात ज़्यादा बढ़ती, मैने घर से बाहर निकल जाना ही सही समझा। मैंने ज़ोर से घर का दरवाजा पटका और बाहर निकल गया। जैसे ही मैं सड़क तक पहुँचा, मुझे याद आया की जल्दबाज़ी में घर की चाबी, सेलफोन और बटुआ सब घर के अंदर ही रह गया था और जितनी ज़ोर से मैने दरवाजा पटका था, मुझे यकीन था की अगर मैं घंटी बजाऊँगा तो भी मधु सारी रात मेरे लिए दरवाजा नहीं खोलने वाली। बीच सड़क पे आवारा कुत्ते मुझे देख कर ऐसे भौंक रहे थे जैसे उनका कोई बिछड़ा हुआ साथी वापस मिला हो। शायद उन्हें भी यह अंदाजा हो गया था की मैं सारी रात उनके साथ गुजारने वाला हूँ और वो मुझे सांत्वना दे रहे थे।

“क्या हुआ राघव, ऐसे क्यूँ सड़क के बीचो-बीच खड़े हो ?” बाहर टहलते हुए एक पड़ोसी ने पूछा।

“कुछ नहीं, आसमान के तारे गिन रहा हूँ। तुम अपना वॉक करो ना, तोंद बहुत निकल आयी है तुम्हारी।” मैने रूखा सा जवाब दिया। पड़ोसी ने अजीब सी शक्ल बनाई और चला गया। मैंने भी सड़क पर तमाशा करने के बजाये अपने मोहल्ले से दूर निकलना ही मुनासिब समझा और चलते हुए शहर की तरफ निकल आया।

अल्बर्ट आइंस्टीन ने सच ही कहा है कि जब आप एक खूबसूरत लड़की के साथ बैठे हों तो एक घंटा एक सेकंड के समान लगता है और जब आप धधकते अंगारे पर बैठे हो तो एक सेकंड, एक घंटे के समान लगता है। इसे सापेक्षता कहते हैं और मेरा साथ उस वक़्त यही घटित हो रहा था। कहाँ मैं मधु को सरप्राइज करके उससे अपने लिए तारीफे सुनने वाला था और कहाँ मैं इस वक़्त बेवजह शहर की गलियाँ छान रहा था।

जैसे-जैसे मैं चलता जा रहा था, मेरे दिमाग़ में आज का पूरा दिन वापस क्या मधु ठीक कह रही थी? क्या मैं सच में मैं इतना गैर-जिम्मेदार और मतलबी हूँ ? वैसे अगर मैं उस टकले दामाद की बर्थडे पार्टी में कुछ देर चला जाता तो कौनसी आफ़त आ जाती ? मधु भी तो सिर्फ मुझे खुश करने के लिए मेरे साथ बहुत सी उबाऊ फ़िल्में देखती है। मैं अपने आप से कहने लगा।

मेरे दिमाग़ में अब मधु के साथ शादी से पहले की मुलाक़ातें घूमने लगी। किस तरह मैं उसके साथ बात करने के लिए, उसके साथ वक़्त बिताने की लिए दीवाना रहता था। 'तो क्या मैं शादी के बाद बदल गया हूँ ?' मैंने खुद से पूछा।

कभी-कभी जब सपने हक़ीकत बनते हैं तो हम उनकी अहमियत, उनकी कीमत भूल जाते हैं। हमें यह अहसास ही नहीं रहता की जो आज हमारी हक़ीकत है, वो हो सकता है कि ना जाने कितने लोगों का सपना हो।

अंतर्मन में उमड़ी इस उधेड़बुन में मैं ना जाने कितने मील घर से दूर निकल आया था। जैसे ही मेरा गुस्सा शांत हुआ और मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ, मैं मुड़ा और तेज़ी से वापस घर की ओर चलने लगा। घर जब पहुँचा तो देखा की मधु बाहर आँगन में ही बड़ी बैचेनी से घूम रही है।

मुझे देखते ही मधु मेरे पास दौड़ते हुए आई और जोर से गरजी, “आप क्या पागल हो गये हो। बिना बताए इतनी देर कहा चले गये थे ?” मैंने महसूस किया कि उसकी आँखों में नमी थी।

“क्यूँ ? तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है ? तुम तो मुझे रोकने एक बार भी नहीं आई।” मेरा पुरुष अहंकार अभी भी मुझे अपनी ग़लती मानने से रोक रहा था।

“मैं आपको बुलाने बाहर तक आई थी लेकिन आपको गुस्से में सुनाई कहाँ देता है ? मदमस्त हाथी की तरह पता नहीं कहाँ चलते जा रहे थे। आपको अंदाज़ा भी है कि हम दोनों की क्या हालत हुई है ? पूछो श्लोक से कि हम दोनों आपको कहाँ-कहाँ ढूंढ़ने निकले थे। वो बेचारा कब से मुझसे पूछ रहा था कि पापा कब वापस आयेंगे। किसी तरह बहला फुसलाकर कुछ देर पहले ही उसको सुलाया है।” मधु ने कहा।

मैं निरुत्तर था। आख़िर अपनी की हुई बेवकूफी को सही ठहरा भी कैसे सकता था ? बस सिर झुकाकर मधु को इतना ही कहा, “मधु, मैंने सच में तुम्हारे लिए एक बहुत ही प्यार उपहार बनाया था। उसमें मैंने सारी वजहें बयान की थीं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। काश तुम्हें इस वक़्त वो दिखा पाता।”

“आप सच में अब तक मुझे समझ नहीं पाए हो !" मधु बोली, "मुझे सुबह से ही पता था की आप मेरे लिए कोई सरप्राइज प्लान कर रहे हो। जब आपने श्लोक को सरप्राइज गिफ्ट की बात सीक्रेट रखने को कहा था, उसी वक़्त उसने मुझे बता दिया था। दिन को जब आप मेरे लिए सेलफोन लेने मोबाइल शॉप गये थे, वो बात भी मुझे मॉनिका ने फोन करके बता दी थी।”

“तुम्हें सब पता था ?" मैं हैरान था। "तो तुमने मुझे यह बात बताई क्यूँ नहीं ?”

“क्यूँकि मैं देखना चाहती थी कि जो इंसान सारा दिन मेरा मखौल उड़ाता रहता है, वो मेरी की हुई ठिठोली समझ पाता है या नहीं। मैंने मोनिका को दावा किया था कि आप आधे घंटे तक भी मुझसे गिफ्ट की बात नहीं छिपा पाओगे। जब मैंने बैडरूम में जाने का नाटक किया था, तब भी मैं हँस ही रही थी। बस, आप ही समझ नहीं पाए। क्या मज़ाक करना सिर्फ़ आपको ही आता है ? मुझे तो लगा कि आप मुझे मनाने आओगे, लेकिन कहाँ पता था कि आप घर छोड़कर ही भाग जाओगे।”

मैं चुपचाप गर्दन झुकाए मधु की बातें सुन रहा था।

“राघव, मैं कुछ दिनों से महसूस कर रही हूँ की तुम थोड़ी थोड़ी बात पे मुझसे झुंझला जाते हो। तुम्हें ऐसा क्यूँ लगा कि मैं तुमसे किसी भौतिक वस्तु के लिए तुमसे नाराज़ हो जाऊंगी? अगर शादी की पाँच साल के बाद भी हम एक दूसरे की परेशानियाँ, तकलीफें या जरूरतें नहीं जान पाए हैं तो हम अब तक भी एक दूसरे के लिए अनुकूल नहीं बन पाएँ हैं। फिर इन तोहफों का क्या मतलब रह जाता है? कभी कभी तो ऐसा लगता है की मैने शादी किसी और राघव से की थी।”

"मैं अपनी ग़लती समझ रहा हूँ मधु। लेकिन सच मानो, मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ जितना शादी से पहले करता था।” मैने मधु की आखों में देखते हुए कहा।

“मैं जानती हूँ बुध्दू!” मधु ने मुझे गले लगाया, “और एक बात जान लो, आपने भले ही मुझसे प्यार करने की ढेरों वजहें लिखी हों, लेकिन मेरे लिए आपसे प्यार करने के लिए सिर्फ़ एक ही वजह काफ़ी है कि आप जैसे भी हो, मेरे हो!”

हम दोनो एक दूसरे की बाहों में समा गए। अब बातों की और कोई गुंजाइश नहीं बची थी।

रात के 12 बज चुके थे।

हमारी पाँचवी सालगिरह आ गयी थी।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy