निर्जन टापू
निर्जन टापू
उन् दोनों ने अपने रिश्ते को एक और मौका देने का सोचा।
उन्हें लगा शहर की भीड़- भाड़ भागमभाग उन्हें एक दूसरे से और दूर कर रही है, उनके मध्य पसरी इस अँधेरी चुप के लिए शायद शहर , भीड़ और व्यस्तता ज़िम्मेदार है।
सो वे १ हफ्ते की छुट्टी ले कर, फ़ोन, लैपटॉप , बच्चे सब को घर पर रख कर बस कुछ कपड़े संग समंदर के इस निर्जन से टापू पे आ गए जहाँ न बिजली न कोई भीड़ दूर तक सन्नाटा । सिर्फ समंदर और इक्के दुक्का दिखते लोग पर यह क्या!
वोह दोनों तो कुछ नहीं लाये थे साथ अपने बैग में, न शिकवा न शिकायत फिर कैसे यह चुप्पी कब और कैसे साथ आ गयी उनके?
कहाँ छूप कर आई या अब वह एक हिस्सा बन गयी है उन् दोनों के जीवन का?!
वो सुबह उठ के निर्जन समंदर के किनारे आ जाती कितना अद्भुत दृश्य होता,अचानक किसी छुपे हुए बच्चे सा लाल मद्धम रौशनी लिए सूरज का समंदर की गोद से उछल कर निकलना! वो घंटो उस बाल सूरज को तेजवान युवक होते देखते रहती और अचानक बच्चे की याद बच्चों की शरारत की तरह उसे घेर लेती अपने आगोश में।
और वो धीरे धीरे अपने कॉटेज की ओर मुड़ जाती।
वो अब तक सो रहा है जैसे सदियों की नींद बकाया है और ७ दिन में उसे सो लेना है।
पर क्या वो सचमुच सो रहा है? नहीं वो भी सोच रहा है हर काम इतनी मुस्तैदी के साथ करने वाला, बात बे बात ठहाके लगाने वाला शख़्स घर के अन्दर आते ही उसमें से छिटक के कहाँ रह जाता है?
तभी वो उसे ही ढूंढने को आया है!
पर हाय रे लगता है वो शख़्स GMail के password सा खो गया है।
उसके अन्दर से कहीं और यहाँ करने को कुछ नहीं। टीवी भी नहीं की मैच देखे या न्यूज़ सुने। एक हफ्ते इस समंदर सी खरी गहरी और दिखती चुप इस औरत से क्या बात करे यही सोचता वह चुप -चाप सोने की कोशिश करता रहा।