उदास तस्वीरें
उदास तस्वीरें
“कितनी उदासी है इन तस्वीरों में, जैसे किसी ने दिल के दर्द को रंगों में उतार दिया हो...”
शहर की आर्ट गेलरी में लगी तस्वीरों को निहारते हुये समीर ने कहा । समीर जो एक बैंक में असिस्टेंट मेनेजर था और अक्सर आर्ट गेलरी में आता रहता था । समीर को तस्वीरों से बड़ा लगाव था और इसीलिए आज अपनी व्यस्त दिनचर्या होने के बाद भी किसी न किसी तरह उसने यहाँ आने के लिये वक्त निकाल ही लिया था ।
“पता नहीं मुझे तो कुछ ख़ास नहीं लगीं सब एक जैसी ही तो हैं...”
समीर के साथ आये उसके दोस्त रेंचो ने तस्वीरों में ज्यादा दिलचस्पी न दिखाते हुये जवाब दिया ।
“शट अप रेंचो...तुम क्या जानो आर्ट क्या होती है...इन मास्टरपीसेस को तुम एक जैसी कैसे कह सकते हो”
थोड़ा नाराज होते हुये समीर ने कहा ।
“हाँ भाई मज़ाक कर रहा था..जानता हूँ तू आर्ट की बुराई नहीं सुन सकता...लेकिन यार ये स्मिता कुलकर्णी है कौन ?” बात को घुमाते हुये रेंचो ने पूछा
“जी ये इस नाचीज का नाम है” बगल से आती हुई इस खूबसूरत आवाज़ को सुनकर जब दोनों मुड़े तो सामने मुस्कुराती हुई स्मिता खड़ी थी ।
“ओह तो ये तस्वीरें आपने बनाई हैं ?” समीर ने सवाल किया
“जी..बस कोशिश की है” विनम्रता के साथ मुस्कुराते हुये स्मिता ने कहा ।
“क्या बात है, आपकी तस्वीरों ने तो दिल छू लिया...वाकई कमाल की आर्टिस्ट हैं आप” दिल खोलकर तारीफ़ करते हुये समीर बोला
“जी शुक्रिया” स्मिता थोड़ा शर्मा गयी और फिर बोली “पता है आप पहले हैं, जिसने इस शहर में मेरी तस्वीरों की तारीफ़ की है”
“अगर ऐसा है तो मैं खुशकिस्मत हूँ...वैसे इस शहर के लोगों को आर्ट की परख ज़रा कम ही है...लोग इतनी अच्छी तस्वीरों को भी एक जैसी और साधारण बता देते हैं” रेंचो को घूरते हुये समीर ने कहा
“अरे वो..वो तो मैंने तुझे चिढाने के लिए बोला था... तस्वीरें बहुत अच्छी हैं...सच में” रेंचों थोड़ा सकपकाया
“अरे वाह अब तस्वीरें अचानक से अच्छी हो गयीं ?” समीर ने फिर कटाक्ष करते हुये कहा
उन दोंनों की नोकझोंक सुनकर स्मिता हँस पड़ी और उसे हँसते देखकर रेंचो और समीर भी ।
“मेरा नाम समीर दीक्षित है..,आपकी इन तस्वीरों का प्रशंसक होने के अलावा, मैं एक बैंकर हूँ और इसी शहर में रहता हूँ...ये मेरा दोस्तकम कलीग रामचरण शर्मा है मैं इसे प्यार से रेंचो बुलाता हूँ” अपना और रेंचो का औपचारिक परिचय देते हुये समीर ने कहा
“जी..मिलकर अच्छा लगा” स्मिता मुस्कुरायी
“अच्छा आप दोनों बातें करो, मैं निकलता हूँ, घर में सब्जियां ले जानी है वरना बीबी मारेगी” बोलते हुये रेंचो उन दोनों से विदा लेकर चला गया, अब गेलरी मे स्मिता, समीर और इक्के दुक्के विजिटर्स ही थे ।
“आप बुरा न माने तो एक बात पूछूँ ?”
“हाँ हाँ ज़रूर” समीर की बात का जवाब देते हुये स्मिता ने कहा
“आपकी सारी तस्वीरों में इतनी उदासी क्यों होती है...मेरा मतलब इतनी उदासी लाती कहाँ से हैं आप ?”
स्मिता ने अपने होंठो पे बिखरी हुई मुस्कराहट को समेटा और फिर एक तस्वीर को निहारते हुये बोली
“तस्वीरें इंसान का आईना होती हैं...अपने भीतर झाँक कर जो कुछ खोज पाती हूँ बस वही इनमें उतार देती हूँ...और ये, ऐसी बन जातीं हैं” बोलकर स्मिता एक बार फिर मुस्कुरा दी थी, पर पता नहीं क्यों इस बार समीर को, स्मिता की मुस्कराहट में कुछ बनावट सी लगी ।
स्मिता के जवाब ने समीर के मन में कई सवाल जगा दिये थे... “मतलब ये खूबसूरत कलाकार भीतर से बहुत उदास है?...,ऐसा क्या है आखिर जिसकी वजह से वो दर्द को जी रही है ?” सवाल तो और भी बहुत थे मन में लेकिन उस वक्त वो उन्हें पूछ न सका ।
“क्या हुआ आप तो चुप ही हो गये...कहीं आपको भी तो सब्जियों की याद नहीं आ गई ?” समीर को ख़ामोश देखकर स्मिता ने हँसते हुये कहा
“नहीं..,नहीं....ऐसी बात नहीं है.....मैं तो अभी कुंवारा हूँ...कुछ और सोचने लगा था....खैर छोड़िये.., वैसे कब तक हैं आप भोपाल में ?”
“बस कल तक और” स्मिता ने जवाब दिया
“हमारा शहर भी कुछ कम खूबसूरत नहीं है.., देखा आपने ?” समीर ने पूंछा
“हाँ सुना है मैंने...पर अफ़सोस कभी देख नहीं पाई...और इस बार भी शायद देख न पाऊँ...कल का ही समय है...और आधे दिन तक तो यहीं रहना पड़ेगा...”
“और अगर आपके बचे हुये आधे दिन में भी ये नाचीज आपको शहर की ख़ूबसूरती दिखाने की गुज़ारिश करे..तो..?” शब्दों की ख़ूबसूरती में गुथा आमंत्रण देते हुये समीर ने कहा
“तो..,इससे बेहतर और क्या हो सकता है...लेकिन रहने दीजिये आप बेकार परेशान होंगें” स्मिता ने थोड़ा सा फॉर्मल होते हुये जवाब दिया
“परेशानी कैसी ? ये तो मेरा सौभाग्य होगा...,कि इतनी अच्छी तस्वीरों को रचने वाली इस बड़ी आर्टिस्ट के साथ मैं कुछ पल गुज़ार पाऊँ” एक बार फिर तारीफ के लहजे में समीर ने कहा
“अरे नहीं..,ये तो कुछ ज्यादा ही तारीफ़ कर दी आपने...कोई बड़ी आर्टिस्ट वार्टिस्ट नहीं हूँ मैं...बस कोशिश करती रहती हूँ” थोड़ा असहज होते हुये स्मिता बोली
“तो ठीक है कल दोपहर के बाद मैं आपको लेने पहुँच जाऊँगा...ये मेरा कार्ड है, आप जैसे ही फ्री हों मुझे बता दीजियेगा...मैं आ जाऊँगा” जेब से अपना कार्ड देते हुये समीर ने कहा ।
स्मिता ने कार्ड लेकर समीर को धन्यवाद दिया..,दोनों ने कुछ देर और बात की और फिर कल आने का बोलकर समीर चला गया । पता नहीं क्यों स्मिता को समीर में कुछ अलग सा लगा था इसलिये वो उसे न नहीं बोल पाई, अगले दिन दोपहर के बाद समीर ने स्मिता को आर्ट गैलरी से लिया और चल पड़ा शहर दिखाने ।
बिड़ला मंदिर, मनुभावन टेकरी, ट्राइबल म्यूजियम जितना भी जो कुछ उस वक्त में दिखाया जा सकता था, दिखाया.,और अंत में बड़ी झील के किनारे जाकर कार पार्क कर दी ।
इस बीच बातों बातों में समीर ने स्मिता को बताया कि कैसे वो एक लड़की छाया से प्यार करता था, लेकिन एक एक्सीडेंट में छाया की मौत हो जाने के बाद उसने अब तक किसी से शादी नहीं की...घर वालों ने बहुत कोशिश की...बहुत सी लड़कियों से मिलवाया भी लेकिन किसी में भी उसे छाया नज़र नहीं आई...छाया को पेंटिंग करने का बहुत शौक था..,इसलिये अक्सर वो ऐसे ही पेंटिंग्स को निहारकर उनमे छाया की मौजूदगी को महसूस करता रहता है । समीर की कहानी जानकार तो स्मिता जैसे अपनी भी उदासी भूल गई थी ।
“अन्दर से इतने अकेले हो.., और दुनियां को दिखाते हो कि बहुत खुश हो ?” समीर की आँखों में देखते हुये स्मिता ने कहा
सुनकर समीर मुस्कुराया है और बोला “आप भी तो वही कर रही हैं ?”
स्मिता ने नज़रें झुका लीं लेकिन कोई जवाब नहीं दिया और एक गहरी सांस लेकर झील को निहारने लगी...झील के किनारे शाम को बैसे भी नज़ारे बहुत रूमानी हो जाते हैं, फिर उस दिन तो हलकी धुंध भी छाई हुई थी, जो उन नज़ारों में चार चाँद लगा रही थी...झील के उन नज़ारों में कुछ ऐसा जादू है कि हर रोज शहर भर के प्रेमी जोड़े वहां आकर एक दूसरे में खोये हुये घंटो तक बस झील को निहारते रहते हैं....किनारे किनारे चलते हुये स्मिता भी झील को एकटक निहारे जा रही थी...और समीर स्मिता को....झील की ओर से आ रही हलकी हलकी ठंडी हवा में उड़कर चेहरे पर आते हुये स्मिता के बाल उसे और भी खूबसूरत बना रहे थे ।
“उदासी की वजह बताई नहीं आपने...??” ख़ामोशी तोड़ते हुये समीर ने पूछा
“क्या करेंगे जानकर..??” उसी तरह झील को निहारते हुये स्मिता ने जवाब दिया
“मुझे जवाब की उम्मीद थी, पर आप तो उल्टा सवाल कर बैठीं...” हँसते हुये समीर बोला
स्मिता ने पलटकर समीर को देखा और फिर झील को देखते हुये अपनी कहानी बताने लगी –
“मैं एक डाइवोर्सी हूँ...पैदा होते ही माँ गुज़र गयी थी, पापा ने दूसरी शादी की और अपनी अलग दुनिया बसा ली...मुझे मेरे मामाओं ने अपना फ़र्ज़ समझ कर पाला.,पढ़ाया..,और शादी कर दी..बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थी..पेंटर बनना चाहती थी....लेकिन एक बिन माँ बाप की बच्ची के सपनों की कद्र कौन करता है भला..,पढ़ने दिया, ये क्या कम था...फिर सोचा था शादी के बाद अपने सपने पूरे कर लूंगी..लेकिन जिससे शादी हुई, उसे तो सेविका चाहिये थी पत्नी नहीं...उसके लिए मेरे अस्तित्व का मतलब सिर्फ एक जिस्म होना था जिसे वो हर रोज अपनी तरह से इस्तेमाल करता....लेकिन मैं सारी ज़िन्दगी कहाँ तक बर्दाश्त करती...आखिरकार वो रिश्ता 6 महीने में ही टूट गया...तलाक दे दिया था उसने मुझे”
बोलते बोलते स्मिता की आँखे छलक पड़ीं...समीर ने बिना कुछ कहे उसके कंधे पे अपना हाथ रखा और जेब से निकाला हुआ अपना रूमाल उसकी ओर बढ़ा दिया.., स्मिता ने आँसू पोंछे और एक गहरी साँस लेते हुये आगे बोली
“उसके बाद ख़ुद को समेटा, जाना और छोटी छोटी कोशिशों से यहाँ तक आ गई.....हाँ अकेली हूँ..पर अब जितनी भी हूँ..,ख़ुद की हूँ”
“अब समझ आया...वो तस्वीरें इतनी उदास क्यूँ थीं..” समीर ने उसकी आँखों को देखते हुये कहा, स्मिता ने पलकें झुकाईं और थोड़ा मुस्कुराते हुये बोली
“उम्मीद है सारे जवाब मिल गये होंगे आपको...अब वापिस चलें ??”
“जी...लेकिन चलने से पहले बस एक आखिरी सवाल का जवाब जानना चाहता हूँ” समीर ने थोड़ा सा गंभीर होते हुये कहा
“पूछिये..” स्मिता ने इज़ाज़त दी
“शादी करेंगी मुझसे ??” समीर ने आँखों में आँखों डालकर एक ऐसा सवाल पूछा था जिसकी उम्मीद नहीं थी शायद स्मिता को...वो एक टक समीर को देखती रह गयी और फिर बिना कुछ कहे पलकें झुकाईं और चेहरा मोड़कर झील को देखने लगी
“मैं जानता हूँ...इतना आसान नहीं होगा आपके लिए...पर मैं इंतेज़ार करूँगा...आराम से सोचकर जवाब दे देना..” समीर ने आगे कहा
“क्यूँ ? मुझ में छाया देख रहे हैं..??” उसी तरह चेहरा मोड़े हुये स्मिता ने धीमे से पूछा
सुनकर थोड़ा ख़ामोश रहने के बाद समीर बोला “नहीं..ये सच है कि आज तक हर लड़की में मैं छाया को देख रहा था...लेकिन ज़िन्दगी में पहली बार आज छाया की जगह किसी को देख रहा हूँ”
जवाब सुनकर स्मिता की आँखे फिर एक बार छलक पड़ीं...उसके बाद उन दोनों ने वहाँ कोई बात नहीं की लेकिन रास्ते में समीर ने कहा “आप अपना जवाब जब तक चाहे तब तक दें...मैं इंतेज़ार करूँगा...लेकिन मैं चाह रहा था कि जाने से पहले आज रात का डिनर आप मम्मी पापा के साथ करें”
स्मिता मान गई थी...घर में सबको बहुत पसंद आई और सबने मन ही मन उसे बहू के रूप स्वीकार भी कर लिया था लेकिन स्मिता को ये रिश्ता स्वीकार करने में 2 महीने लग गये...समीर के प्यार और कोशिशों ने आख़िरकार उसे मना ही लिया था ।
उसकी मंज़ूरी मिलने के अगले तीन महीने बाद उन दोनों की शादी भी पक्की हो गई और मुलाकातों का सिलसिला भी चल पड़ा। इसी बीच अहमदाबाद में स्मिता की तस्वीरों की एक और प्रदर्शनी लग रही थी जिसके लिए स्मिता ने ख़ासतौर पर समीर को फ़ोन लगाया और पूरे अधिकार के साथ उसे उपस्थित होने का आदेश सुना दिया..,अब स्मिता का हुकुम भला समीर कैसे ठुकरा सकता था इसलिये अगली सुबह तडके ही ट्रेन पकड़ ली और अहमदाबाद जा पहुँचा जहाँ स्टेशन पे स्मिता पहले ही आ चुकी थी ।
जब शाम को वे दोनों तैयार हो के एक्जीबिशन में पहुँचे तो गैलरी के भीतर क़दम रखते ही समीर ठिठक गया और फिर पलटकर खुश होते हुये स्मिता को निहारने लगा....
क्यूँकि स्मिता की हमेशा उदास रहने वाली तस्वीरें आज मुस्कुरा उठी थीं ।