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Sheetal Raghav

Tragedy Inspirational

4.7  

Sheetal Raghav

Tragedy Inspirational

बड़ी  मां

बड़ी  मां

6 mins
843


सावित्री एक छोटी सी बच्ची थी । जब वह 7 साल की थी, तभी उसके मां-बाप का निधन हो गया था। अपनी देखभाल छोटी सी बच्ची कैसे करती प्रश्न बहुत बड़ा था। रिश्तेदार तो बहुत सारे थे, पर कौन सावित्री की जिम्मेदारी ले । सबकी नजर सावित्री के मां-बाप द्वारा छोड़ी गई अपार संपत्ति पर थी, परंतु कोर्ट ने सारी संपत्ति के लिए ट्रस्ट का गठन कर दिया था । जो काम धंधे पर सुचारू रूप से नजर रखने और चलाने का कार्य करें जब तक कि सावित्री 18 साल की नहीं हो जाती।


सावित्री को अनाथ आश्रम भेज दिया जाता है। मां-बाप के बिना सावित्री बहुत दुखी रहने लगती है। परंतु अपने माता-पिता का सपना पढ़ लिखकर ही पूरा किया जा सकता है। यह सोचकर वह अपना सारा ध्यान पढ़ाई लिखाई पर केंद्रित कर लेती है और हर परीक्षा में उत्तीर्ण और अव्वल आती है।वह अपने माता-पिता के सपनों के बहुत करीब पहुंच जाती है एवं एलएलबी की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती है," परंतु उसका स्वयं का भी एक सपना होता है, जो कि उसने आश्रम में आकर देखा था कि वह एक ऐसे आश्रम का निर्माण करें, जहां वृद्ध आश्रम और बाल आश्रम एक ही स्थान पर हो "।


वह एक ऐसे आश्रम का निर्माण करें जहां पर वृद्ध आश्रम और बाल आश्रम एक ही स्थान पर हो । जहां बच्चों को मां-बाप और बूढ़े मां बाप को संतान और जीने का सहारा मिल सके। 


25 जुलाई को उसका अट्ठारह जन्मदिन है। उसे अपने मां-बाप की सारी संपत्ति जो ट्रस्ट की निगरानी में और ज्यादा बढ़ गई थी उसकेजज साहब की उपस्थिति में संपत्ति को सावित्री के नाम कर दिया जाता है। सावित्री अपने सपने को साकार करने का ब्लू प्रिंट तैयार कर रही थी। सावित्री जब कॉलेज में थी तभी उसे सिद्धार्थ नाम के एक लड़के से प्रेम हो गया था। सिद्धार्थ की परवरिश भी वही अनाथ आश्रम में ही हुई थी, तो दोनों अच्छे दोस्त बन गए और फिर प्रेम के बंधन में बंधे गये ।


सिद्धार्थ बहुत महत्वकांक्षी था। उसे किसी प्रकार का कोई लालच नहीं था। वह अपने सपने अपने बल पर पूरा करने में विश्वास करता था। जल्दी ही सावित्री और सिद्धार्थ ने शादी कर ली।इस बीच सावित्री का अनाथ आश्रम बनाने का सपना थोड़ा सा स्थगित हो गया। एक दिन सावित्री को खबर मिलती है कि वह मां बनने वाली है और पूरा घर खुशी के आलम में डूब जाता है। परंतु कुछ समय बाद उसका एक छोटा सा एक्सीडेंट होता है जिसमें उसका मिसकैरेज हो जाता है।


उसके बाद लगभग 7 साल बीत जाते हैं मगर उनके घर कोई दूसरी खुशखबरी नहीं आती।शादी को 7 साल हो गए थे, परंतु औलाद के सुख से सावित्री और सिद्धार्थ वंचित थे। सावित्री ने कई बार, कई टेस्ट करवाए पर नतीजा कुछ भी नहीं । सिद्धार्थ भी औलाद के लिए तरसता है परंतु कुछ कर नहीं सकता था। वह औलाद के मोह में इतना पागल होता है, कि सावित्री को तलाक देकर दूसरा विवाह कर लेता है। सावित्री फिर एक मोड़ पर आकर अकेली ठगी सी खड़ी रह जाती है।


अकेले रह रहे कर, मायूसी से उसका दम घुटने लगता है । तब उसे अपने सपने की याद आती है। "पापा का सपना वकील बनकर पूरा किया"। आज सावित्री का नाम पूरा शहर आदर के साथ लेता था। एक अच्छी और कामयाब वकील थी, परंतु इतनी कामयाबी किसके लिए ?यह सोचकर वह "वकालत छोड़ कर अपने अनाथालय वाले सपने को अंजाम देने में जुट जाती है" ।काफी लोगों की सहायता और कड़ी मेहनत के बाद एक अनाथालय का निर्माण होता है ।


जिसमें वृद्धा आश्रम और बाल आश्रम और छोड़ी और सताई गई महिलाओं को रहने का स्थान का निर्माण समिति द्वारा कराया जाता है।इस सपने को साकार करने में और धरातल पर प्रस्तुत करने में लगभग 5 साल गुजर जाते हैं। 

सावित्री अकेली जो थी परंतु सपना साकार हो जाता है। आश्रम का नाम "मां का आंचल" रखा जाता है। अब इनॉगरेशन का वक्त आया।आज सिद्धार्थ एक बड़ा और कामयाब ईमानदार जज है जिसकी शहर में रुतबा नाम और इज्जत है। 


सावित्री ने अपने आश्रम के उद्घाटन के लिए सिद्धार्थ को न्योता भेजा और सिद्धार्थ मुख्य अतिथि के रुप में सावित्री के आश्रम का उद्घाटन करने पहुंचे। साथ में सिद्धार्थ की दूसरी पत्नी मनोरमा भी पहुंची। जैसा नाम वैसा ही रूप था मनोरमा का।उद्घाटन समारोह प्रारंभ हुआ और सिद्धार्थ ने दीप प्रज्जवलित कर समारोह का शुभारंभ किया। फिर फीता काटकर उद्घाटन हुआ । और सावित्री उसके बाद मनोरमा और सिद्धार्थ को अंदर आश्रम दिखाने ले गई। जहां पर स्त्रियों औरतों और बच्चों के लिए अच्छे खासे इंतजाम किए गए थे।


मनोरमा आश्रम देखने में व्यस्त हो जाती है। सावित्री ने सिद्धार्थ से पूछा, "तुम खुश तो हो ?मनोरमा के साथ सब कैसा चल रहा है ? कितने बच्चे हैं तुम्हारे ? सिद्धार्थ !"सावित्री की बात सुनकर स्तब्ध का खड़ा रह गया। 


सावित्री ने आवाज लगाई।" सिद्धार्थ कहां खो गए क्या हुआ ? तुम खुश तो हो ना ?तुम्हारी खुशी के लिए मैंने तुम्हारा तलाक भी मंजूर कर लिया था, परंतु आज भी मैं तुम्हारे सुख के लिए ही कामना करती हूं।"


सिद्धार्थ की आंखें छलक आई और वहीं पास ही में रखी बेंच पर वह बैठ गया । और "सावित्री का हाथ अपने हाथों में लेकर बोला, मुझे मेरी करनी का फल मिला है। तुम्हें छोड़कर जिस औलाद के सुख के लिए मैंने दूसरी शादी की भगवान ने मुझे मेरी करनी का फल दिया है।सावित्री !"


"क्या हुआ? सिद्धार्थ !"सावित्री ने पूछा ??????


सिद्धार्थ बोला, "आज भी मैं और मनोरमा शादी के 5 साल बाद भी औलाद सुख के लिए वंचित है। यह सब तुम्हें दुख पहुंचाने और तुम्हें त्यागने का परिणाम है।काश !काश! में उस दिन रुक जाता। "


सावित्री ने कहा......."काश ! कि अब कोई गुंजाइश नहीं है।" 


सिद्धार्थ , "मैंने तुम्हें कभी दोषी ही नहीं माना। यह सब मेरा नसीब है। बचपन में मां बाप छोड़ कर चले गए और बाद में तुम ।काश मैं .......।अब यहां अनाथालय ही मेरा लक्ष्य और संकल्प है।" इतने में मनोरमा आश्रम देखकर वापस आ जाती है और.....


मनोरमा सावित्री से बोलती है" दीदी इन्होंने मुझे आपके बारे में सब बताया। कुछ भी कभी भी नहीं छुपाया। मैं इनकी ओर से आपसे माफी मांगती हूं। परंतु जो कुछ भी आप दोनों के बीच में हुआ, मैं उसे नहीं बदल सकती"। पर आपसे एक इजाजत मांगना चाहती हूं।" 

"सावित्री हां हां !मनोरमा कहो ना।"


"क्या मैं तुम्हारे आश्रम है, कभी-कभी आ सकती हूं दीदी । यहां आए बच्चों को ममता देकर मैं अपनी ममता को तसल्ली तो दे नहीं सकती हूं

ना ।"


"हां हां मनोरमा कभी भी आ सकती हो। इसे अपना ही समझो। "


आज अपने अतीत के कार्य पर सिद्धार्थ शर्मिंदा था, परंतु अतीत को पलटा तो नहीं जा सकता था। सावित्री से विदा ले सिद्धार्थ और मनोरमा चले गए। 


आज आश्रम को तैयार हुए और चलते चलते 2 साल बीत गए। आश्रम के वृद्धजन महिलाएं और बच्चे मिलकर आश्रम का रखरखाव, बागवानी और मौसमी फल व सब्जियां उगा कर अपना कीमती वक्त और श्रम दान देते हैं।जिन महिलाओं और वृद्ध जनों को जिन जिन कार्यों में रुचि है वह वह कार्य करते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं ।एवं इसके साथ-साथ आश्रम को भी सहयोग करते हैं। एक छत के नीचे बच्चों को मां और मां को बच्चे और वृद्ध जनों को सहारा मिल गया। "यही है मां का आंचल आश्रम " !


सावित्री आज सभी की "बड़ी मां" बन गई है।सभी की नजरों में वह सम्मान की पात्र है। औलाद विहीन होकर आज सावित्री बच्चों, महिलाओं और वृद्धजनों की " बड़ी मां " बन गई। बच्चे हैं संस्था में और वह सभी की है...     "बड़ी मां "।सैकड़ों बच्चे हैं आज संस्था में और सभी सावित्री को एक मां की तरह प्रेम करते हैं।

सावित्री आज सभी की ममतामई मां बन गई "बड़ी मां " ।



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