रंगमंच की कठपुतली
रंगमंच की कठपुतली
"बाबू मोशय हम सब तो रंगमंच की कठपुतली हैं ,कौन कब कैसे उठेगा कोई नहीं जानता" इरफान खान के मुँह से यह डायलॉग सुनना अमर के लिए एक अजीब अनुभव था। सामने इरफान बैठे थे और अमर से बात कर रहे थे।
यूँ तो अमर ने इरफान की सारी फिल्में देखी थी पर कभी सोंच नही सकता था कि एक वक्त आएगा जब प्रत्यक्ष में इरफ़ान से मिलने का मौका मिलेगा। अमर को याद हो आता है कि कैसे लंच बॉक्स फ़िल्म देख वो इरफान का फैन हो गया था वो भी पक्का वाला।
अब जब इरफान सामने थे अमर की घिघ्घी बंधी थी। तब अभिनेता ने अपने अंदाज में पूछा "लो कर लो बात, भईया तुम को यकीन नहीं कि मैं तुमसे मिल रहा"
तब अमर ने कहा ऐसी बात नहीं । मैंने आपकी सारी फिल्में देखी है ,हॉलीवुड वाली भी। आप मेरे इंस्पिरेशन हैं।
इरफान चौंक गए। उन्होंने पूछा एक एक्टर इंजीनियर के लिए कैसे इंस्पिरेशन हो सकता है।
तब क्या, अमर ने उन्हें बताया कि कैसे पान सिंह तोमर फ़िल्म देखने के बाद उसमें नई ऊर्जा का संचार हुआ था और उसने अपनी जॉब हासिल की थी मल्टीनेशनल कंपनी में।
इरफान की आंखों की अदाकारी के तो सब दीवाने हैं पर इरफान पहली बार किसी फैन के इंस्पिरेशन बनता देख भावुक हुए बिना नहीं रह पाए। इरफ़ान को एक नई मूवी के लिए शूटिंग पर जाना था।
अमर ने अलविदा कहा। ऐसा करते ही सोते अमर की आंखें खुल गयी सामने टीवी पर कोई फ़िल्म खत्म हो रही थी। फ़िल्म थी जुर्रासिक पार्क जिसमे इरफ़ान ने एक्टिंग की थी और फ़िल्म में उनकी मौत हो जाती है।
यह फ़िल्म तब आ रही टीवी पर, जब इरफान की मौत हकीकत में हो जाती है। उनके फैन अमर को इस बात की संतुष्टि थी कि हकीकत में न सही सपने में ही वो मिल पाया अपने इंस्पिरेशन से।