लाइब्रेरी का सच
लाइब्रेरी का सच
रिया एक छोटे से शहर में अपने माता पिता के साथ एक सुखी जीवन जी रही थी। किन्तु एक दिन उसकी पूरी दुनिया ही बदल गइ। अपने एक रिश्तेदार से मिलकर वापस आते वक़्त उसके माता पिता का एक्सीडेंट हो जाता है और वहीं सड़क पर उनकी मृत्यु हो जाती है। रिया के लिए उसकी ज़िन्दगी जैसे ख़त्म ही हो जाती है।
अकेले रहना मुश्किल और असुरक्षित होने की वजह से वो अपनी एक दूर की आंटी जो बिलकुल अकेली रहती थी , उनके पास मणिपुर चली जाती है। वहाँ वो एक छोटे स्कूल में टीचर की नौकरी कर लेती है।
इतने बड़े सदमे के बाद रिया बहुत दुखी और निराश रहने लगती है। एक दिन उसके घर के पास रहने वाली स्नेहा उसे अपने जन्मदिन पर आने का न्योता देती है। रिया ये सोचकर वहाँ चली जाती है की कुछ मूड बदल जायेगा। उस पार्टी में स्नेहा के कुछ दोस्त और परिवार वाले आये हुए थे। उसके उन दोस्तों में से एक दोस्त था 'राज'।
राज को रिया देखते ही बहुत पसंद आती है और वो उससे बात करने के लिए पहुंच जाता है। बातें करते करते वो दोनों एक दूसरे को अपना मोबाइल नंबर दे देते हैं। मोबाइल से चैटिंग , फिर थोड़ी मुलाकातें रिया के जीवन में फिर से खुशियां ले कर आयी।
राज एक आमिर खानदान का लड़का और कारोबार में अच्छा कमाने वाला लड़का था। थोड़े ही दिन में रिया को उसने शादी के लिए प्रोपोज़ कर दिया। रिया फ़ौरन मान गयी , उसकी अकेली ज़िन्दगी में राज एक सहारा बन कर जो आया था।
अपनी आंटी और कुछ रिश्तेदारों की सहमति से दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली। शादी के बाद राज ने रिया से कहा की वो उसे अपने पुश्तैनी महल में ले जाना चाहता है। रिया महल सुनकर फ़ौरन मान गयी। उसको लगा वो उस महल में रानी बनकर रहेगी।
कुछ दिन का प्यार और फिर ये शादी रिया को एक सपने जैसी लग रही थी। राज के साथ ट्रैन का सफर करके वो एक गांव में आ गयी। स्टेशन पर ट्रैन से उतरकर घोड़ा गाड़ी से वो दोनों महल की ओर निकल पड़े। थोड़ा दूर जाने के बाद रिया को एहसास हुआ की उसकी ज़िन्दगी कुछ ही दिनों में कैसे पलट गयी थी। वो खुद को बहुत खुशकिस्मत सोचकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी।
थोड़ी दूर के सफर के बाद वो दोनों महल पहुंच गए। महल बहुत ही आलीशान था किन्तु ज़्यादा देखरेख ना होने की वजह से बहुत धूल मिट्टी से भरा था। राज ने फ़ौरन गांव से एक नौकर को बुलवा लिया।
सब सामान रखते ही रिया घर को संवारने में लग गयी। सब साफ़ सफाई कर ही रही थी तभी उसकी नज़र एक बड़े से दरवाज़े पर पड़ी जिसपर ताला लगा हुआ था। उसने फ़ौरन राज से कहा "ये कौन सा कमरा है ओर बंद क्यों पड़ा है ? इसे खोलो ज़रा देखते हैं अंदर क्या है ?"
राज ने कहा " रिया ये मेरे दादाजी की लाइब्रेरी है। मेरे पिताजी बताया करते थे की दादाजी यहां घंटो बैठा करते थे औऱ अपनी कितनी ही किताबें उन्होंने यहीं लिखीं थी। इसकी चाबी तो मुझे भी नहीं पता कहाँ है। इस कमरे में वो किसी को भी जाने नहीं देते थे। मज़ाक में कहते थे की इसके अंदर उनकी कहानियों के सारे किरदार रहते है। "
रिया राज की बात सुनकर और भी ज्यादा उत्सुक हो गयी। उसे लगा अब तो ये कमरा खोलना ही पड़ेगा। उसने सब जगह ढूंढा किन्तु चाबी नहीं मिली। नौकर से कह कर उसने लुहार से चाबी बनवा ली। चाबी बनते ही रिया ने वो कमरा खोल लिया। राज भी उसके साथ उस कमरे में जाकर बहुत खुश हुआ।
पूरा कमरा आलिशान अलमारियों से भरा था औऱ उनमे बहुत सारी किताबें रखी थी। रिया से ज़्यादा राज उन किताबों को देखकर खुश हो गया , उसे पढ़ने का बहुत शौक था। रिया थोड़ी सफाई करके वहाँ से रसोई में चली गयी और राज काफी देर तक वहीँ किताबें देखता रहा।
धीरे धीरे उन दोनों की ज़िन्दगी के दिन बीतने लगे लेकिन रिया को राज में एक अजीब सा बदलाव महसूस हो रहा था। वो वापस महल को छोड़कर जाने को तैयार ही नहीं था। जब भी रिया वापस जाने को बोलती तो वो उसे गुस्से से डाँट देता। रिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था की राज सब कुछ छोड़कर कब तक यहीं गांव में बैठा रहेगा। राज का ज़्यादा से ज्यादा समय लाइब्रेरी में बीतने लग गया।
एक रात उसकी नींद खुली तो राज़ को बिस्तर पर ना पाकर वो घबरा गयी। उसने इधर उधर देखा पर राज कहीं नहीं दिखा। उसने देखा की लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुला था। वो अंदर गयी तो देखा की कुछ किताबें और कमरे का सामान फर्श पर इधर उधर बिखरा पड़ा था। खिड़की का शीशा टूटा पड़ा था जैसे कोई अंदर से बाहर उसे तोड़ता हुआ गया है। रिया को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या करे। नौकर भी रात को उस महल में नहीं रुकता था , वो हमेशा कहता था की रात को कोई साया नज़र आता था। नौकर ने ये भी बताया था की गांव के बहुत से लोगों ने महल में किसी के होने का एहसास करा था। रिया राज़ का इंतज़ार करते करते पता नहीं कब कुर्सी पर ही सो गयी। सुबह जब उसकी आँख खुली और वो अपने कमरे में गयी तो हैरान हो गयी देखकर की राज बिस्तर पर ही सोया हुआ था। रिया ने राज को उठाया औऱ पुछा "राज तुम कल रात को कहाँ गए थे ?क्या तुम्हें रात को कोई काँच टूटने की आवाज़ आयी थी ?"
राज उठा और बोला " मैं कहाँ गया था मैं तो यहीं सो रहा था। नहीं मुझे तो कोई आवाज़ नहीं आयी। " राज का जवाब सुनकर रिया थोड़ा घबरा गयी और सोचने लगी " कहीं राज नींद में तो नहीं चलने लगा ?ऐसा क्या हुआ होगा लाइब्रेरी में की खिड़की का शीशा टूट गया ? कहीं कोई चोर तो नहीं आया था? " अगली रात भी राज कमरे में नहीं था। रिया फ़ौरन लाइब्रेरी की ओर भागी।
दरवाज़ा बंद था लेकिन दरवाज़े के नीचे से आती हुई रौशनी बाहर तक चमक रही थी। रिया को लगा की इतनी तेज़ रौशनी बल्ब की तो नहीं हो सकती। उसने दरवाज़े पर कान लगा कर सुनने की कोशिश करी तो उसे लगा राज अंदर किसी से बात कर रहा था। उसने ज़ोर से दरवाज़ा खोला तो अपनी आँखों पर उसे भरोसा नहीं हुआ। राज का शरीर जैसे किसी जानवर जैसा ह गया था ओर वो किसी भयानक से राक्षस से बात कर रहा था। वो राक्षस खुद को अमर बता कर ज़ोर ज़ोर से हँस रहा था। डर के मारे रिया वहीं बेहोश हो गयी।
थोड़ी देर बाद जब उसकी आँख खुली तो वो लाइब्रेरी के बाहर फर्श पर ही पड़ी हुई थी। उठते ही उसे लगा की जैसे वो कोई सपना देख रही थी। रात को देखा हुआ राज का भयानक शरीर ओर चेहरा उसे याद आने लग गया। उसने कमरे में जाकर देखा तो राज़ वहीँ सो रहा था।
रिया ने निश्चय किया की आज रात वो इस सारे खेल के ऊपर से पर्दा हटा देगी। रात को उसने सोने का नाटक करा ओर जैसे ही देर रात राज उठकर चल पड़ा, रिया भी दबे पाँव उसके पीछे चलने लगी। राज़ लाइब्रेरी के अंदर गया ओर दरवाज़ा उसके पीछे धीरे धीरे बंद होने लगा।
दरवाज़ा बंद होने से पहले ही रिया भाग कर कमरे के अंदर चली गयी ओर सोफे के पीछे छुप गय। राज़ ने एक किताब निकाली ओर पढ़ने लग गया। धीरे धीरे उस किताब में से आवाज़ें आने लगी ओर राज़ उन आवाज़ों से बातें करने लग गया। थोड़ी ही देर में राज़ चिल्लाकर फर्श पर गिर पड़ा और एक रौशनी उसके शरीर में प्रवेश कर गयी। देखते ही देखते राज़ का शरीर और चेहरा एक भयानक पिशाच में बदल गया। ये रूप राज़ के पिछले रूप से बिलकुल अलग था। अपनी डरा देने वाली आवाज़ में वो बोला " मुझे भूख लगी है , खून पीना है , इतने दिनों से कोई शिकार नहीं करा " ये कहता हुआ राज उस टूटी खिड़की से बाहर की और चला गया।
रिया समझ गयी की हो न हो दादाजी के ये लाइब्रेरी भयानक आत्माओं से भरी थी और वो सभी इन किताबों में बंद थी। राज जो किताब पढ़ता था उसी का कोई किरदार राज के शरीर पर कब्ज़ा कर लेता था। उसके दादाजी मज़ाक नहीं बल्कि सच में कहते थे की उनकी लाइब्रेरी में किताबों के किरदार रहते थे। रिया ने बहुत बड़ी गलती करी वो लाइब्रेरी का दरवाजा खोलकर ।
रिया ने बहुत सोचा और उसे यही समझ आया की गांव में कोई न कोई जरूर उसकी मदद करेगा। उसके नौकर ने उसे बताया कि रहस्य्मयी तरीके से गांव के कुछ लोग भी गायब हो रहे हैं। रिया को फिर संधाये हो जाता हैं कि इसके पीछे भी राज का हाथ हैं। रिया अपने नौकर के साथ गांव के कुछ बुजुर्गो से मिलने गयी। काफी पूछताछ के बाद उसे पता चला कि रमेश चाचा शायद उसकी कुछ मदद कर पाएं किउकी बहुत साल पहले उनके पिताजी उसी महल में काम करते थे। रमेश चाचा को जब रिया ने अपना आँखों देखा हाल बताया तो उन्होंने कहा ,"मेरे पिताजी ने मुझे बताया था कि उस महल के मालिक यानी राज के दादाजी एक बहुत जाने माने लेखक थे। लेकिन अपनी कहानियों को सत्य घटनाओं पर आधारित रखना पसंद करते थे। सर्वश्रेष्ठ लेखक का पुरस्कार मिलने के बाद वो थोड़े बदल गए। वो कहने लगा कि कहानी को सत्य घटना बना देंगे। वो किसी तांत्रिक के पास भी जाया करते थे। अपनी लाइब्रेरी में कितने कितने दिन ही बंद रहते थे। पिताजी को यह समझ नहीं आता था कि बिना खाये-पीये एक इंसान कितने दिन तक रह सकता हैं। उन्होंने उस लाइब्रेरी से भयानक आवाजें भी सुनी थी। बहुत सब्र रखने के बाद हार कर उन्होंने उस महल से नौकरी छोड़ दी। फिर कुछ दिन बाद पता चला की रहस्य्मयी हालातों में राज के दादाजी का देहांत हो गया। राज के पिताजी तो पढ़ाई के लिए पहले ही बाहर जा चुके थे। इसलिए उस महल को बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं था। वसीयत के अनुसार वो महल राज के पिता के नाम था और उनके देहांत के बाद वो राज का हो गया। राज अब उस हवेली का मालिक है तो वो किताबों के किरदार उसे अपना रचनाकार समझ कर काबू कर लेते हैं।
रमेश चाचा की सारी बातें सुनकर रिया को यकीन हो जाता है जो वो सोच रही थी वे सत्य है। उसका पति उन आत्माओं का शिकार बन गया है जिन्हें उसके दादाजी ने तांत्रिक से जादू टोना सीख कर जीवित कर लिया था।
गांव के सभी लोगों ने सुझाव दिया की राज को पीर बाबा की दरगाह पर ले कर जाना पड़ेगा। वहीं जाकर राज के शरीर से उन बुरी आत्माओं को निकाला गया और उस महल के कागज़ जला दिए गए जिससे ये पक्का हो जाये की राज अब उसका मालिक नहीं रहा। रिया राज के साथ वो महल और गांव छोड़कर ज़िन्दगी के एक नए मोड़ की तरफ चल पड़ी।