नेकी कर दरिया में डाल
नेकी कर दरिया में डाल
मेरे एक पुराने मित्र ने पहली बार मुझे फोन किया। मुझे फोन करते ही ग्राहक सेवा केंद्र के अधिकारी की तरह दनादन शुरू हो गया और मुझसे रुपयों की मांग करने लगा - यार मुझे कुछ रुपयों की अत्यंत आवश्यकता है। मेरी पत्नी अस्पताल में भर्ती है उसका इलाज चल रहा है और रुपयों की सख्त जरूरत आन पड़ी तो मैं बैंक आया था लेकिन यहां लिंक फेल है इसलिए रुपये नहीं निकाल पा रहा हूं। आज मेरी मदद कर दो तुम्हारे रुपये मैं कल निश्चित वापस कर दूंगा।
मैंने उसकी परेशानी को समझते हुए भी असमर्थता जताते हुए मना कर दिया क्योंकि बीस रोज़ पहले ही मेरे पिता का स्वर्गवास हुआ था। कर्मकांड में बहुत ख़र्च हुआ था।
उसने अब गिड़गिड़ाना शुरू किया - मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं। बच्चों का मुंह देख कर मेरी मदद कर दो। यदि मेरी पत्नी को कुछ हो गया तो मेरे बच्चों को कौन देखेगा। मेरे माता-पिता भी नहीं हैं। परिवार में मैं अकेला ही हूं।
मैंने फिर अपनी असमर्थता जताई और बताया कि मेरे हाथ भी ख़ाली हैं। बीस रोज़ पहले ही मेरे पिता का देहांत हो गया उसमें ख़र्च हो गये। पिछले साल मैंने मेरे दिल का ऑपरेशन करवाया। बीमारी और इलाज की वजह से कामकाज भी ढाई साल से बंद है। मेरे हाथ भी तंग हैं, मैं मजबूर हूं।वो फिर दुहाई देने लगा। कहीं से भी इंतजाम कर दो। बहुत जरूरी है। बात समझने की कोशिश करो। मैं थोड़ा असमंजस में पड़ गया, पहली बार उसने मुझसे मदद मांगी है। मेरी पत्नी ने मुझसे माजरा पूछा मैंने सब हाल कह सुनाया।
मेरी पत्नी ने कहा - मुसीबत किसी पर भी आ सकती है।हम पर भी तो इतनी बड़ी मुसीबत आई थी। आप चाहें तो मदद कर दें।
मैंने कहा - बाहर बाहर ही दोस्ती है घर परिवार नहीं देखा है। बहुत गहराई तक तो उसकी जानकारी नहीं है।
फिर मैंने मन बनाया और उससे पूछा - कितने रुपये चाहिए। उसने कहा - दस हजार। मैंने कहा - इतने रुपये तो अभी मेरे पास नहीं हैं।
उसने कहा - जितने हैं उतने दे दो।
मैंने कहा - पांच हजार रुपये हैं अभी।
उसने कहा - ठीक है, कहां आना पड़ेगा।
मैंने घर का पता बता दिया।थोड़ी ही देर में वो घर पर आ गया।
वो परेशान सा लगा मुझे।मैंने सारा हालचाल पूछ कर रुपये उसे दे दिये।
उसने एहसान मानते हुए कल पूरे रुपये वापस करने का दोबारा वचन दिया।
दूसरे दिन उसका फ़ोन आया। मुझे लगा वो रुपये वापस करने आ रहा होगा। मगर उसने तो दोबारा मुझसे और रुपयों की मांग कर दी।
मैंने इस बार पूरे मन से इंकार कर दिया। वो फिर पुरानी दुहाइयां देने लगा।
मैंने उसकी बातें उसके वचन याद दिलाए तो मुझसे कहा - सारे पैसे एक साथ लौटा दूंगा।
मुझे दाल में कुछ काला लगा। मैंने उसे साफ़ मना कर दिया। वो बिना गतिरोधक के लगातार मिन्नतें करता रहा एक साथ पूरे पैसे लौटाने की बात करता रहा। मैं मना करता गया। मैं उसकी ही बातें याद दिलाता वो अपनी ही सुनाता। फिर उसने फोन काट दिया। कई दिन बीत गए उसने रुपये वापस नहीं किये।
कुछ दिनों बाद मैंने उसे अपने रुपये मांगने के लिए फोन किया तो उसने तारीख दे दी।इस तरह मैं उसे जब भी रुपयों के लिए फोन करता वो तारीख दे देता। कभी कहता उसकी बेटी अपने प्रेमी संग भाग गई। मैं बर्बाद हो गया। मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी। इस तरह हर बार कुछ न कुछ बहाने बना देता। मैंने इतना भी कहा - साफ़ साफ़ बता दे रुपये वापस करेगा या नहीं?करेगा तो वापस कर नहीं तो कह दे नहीं दे पाऊंगा। मैं भूल जाऊंगा उन रुपयों को। वो हर बार रुपये लौटाने का वादा करता तारीखों के साथ। अब मैं उसकी बहानेबाजी से तंग आ गया। मैं वो रुपये भूल ही गया। पर साथ में निराश भी होता हूं कि किस पर भरोसा करें किस पर नहीं। लोग बहाने बनाकर झूठ बोल कर छल करके रुपये-पैसे लेते हैं और वापस करने में बहानेबाजी करते हैं।