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Dr.rekha Saini

Tragedy

4  

Dr.rekha Saini

Tragedy

आख़िरी मुलाकात

आख़िरी मुलाकात

9 mins
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जनवरी की तन-मन सिहरा देने वाली सर्द सुबह थी। परिवार के सभी सदस्य रविवार के अवकाश के कारण अभी तक रजाई में दुबके हुए थे केवल उषा को जल्दी उठने की आदत थी। घर के काम जो निपटाने होते थे। सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ने के बाद ही अन्य काम करती थी। आज भी वही दिनचर्या, उषा ने चाय की कप उठाई और दोनों पैरों को बिस्तर पर पड़ी रजाई में डाले अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्की ले रही थी। प्रथम पृष्ठ पढ़कर उसने जैसे ही पेज बदला, वहाँ छपी खबर देख उषा के हाथ कांपने लगे, हृदय की धड़कने बढ़ गई, माथे पर तेज पसीना आ गया। चेहरे का रंग एकदम उड़ गया। उसे घबराहट होने लगी। उसे लगा क्या मैं कोई बुरा सपना देख रही हूँ? क्या यह सच है? अपने आप को किसी तरह संभाल कर उषा ने पुन: अखबार पर दृष्टि डाली। वहाँ छपे शोक संदेश को देखकर जैसे उषा के पैरों तले की जमीन खिसकने लगी। शोक संदेश में केशव माहेश्वरी की मृत्यु का समाचार फोटो सहित देख उषा की आँखों में जल भर आया। बहुत यत्नों से वह स्वयं को संभाल पाई। ह्रदय विदारक इस संदेश को पढ़कर भी वह रो नहीं सकती थी अब समय और परिस्थितियाँ बदल चुकी थी, वह ससुराल में कई सामाजिक रिश्ते नातों, बंधनों में बंध चुकी थी। सजल आँखों से ही उषा अपने अतीत में अबाध नदी की भाँति बहती चली गई। केशव के साथ बिताया हर लम्हा उसकी आँखों के सामने आने लगा। 

जब पहली बार कॉलेज जाते हुए केशव उसे बस की भीड़ में मिला था। बस इतनी ठसाठस भरी थी कि पैर रखने को भी जगह नहीं थी पर फिर भी कॉलेज समय पर पहुंचने की जल्दी में उषा उसी बस में चढ़ी थी। बस में जहाँ उषा खड़ी थी, उसी के पास एक मेडिकल छात्र भी खड़ा था। हाथों में सफेद एप्रीन, कुछ किताबें और बैग। देखने में सुन्दर, गोरे मुख पर सुखद मुस्कुराहट लिए, एकदम शांत। उषा की नजर उस पर पड़ी तो एक बार देख, देखती ही रह गई पर नारी स्वभाववश पुन: नजर हटा फिर खिड़की में देखने लगी। वह लड़का भी उषा की सादगी और अप्रतिम सौंदर्य को देख नजर नहीं हटा पा रहा था। तभी उषा ने लोगों से नजरे चुरा कर फिर उसे देखना चाहा तो उस लड़के को अपनी ओर देखता पा वह सहम गयी और फिर उसने खिड़की की तरफ मुँह कर लिया। करीब 20 मिनट तक यही क्रम चलता रहा और लड़के का मेडिकल कॉलेज आ गया। वह अपने स्टॉप पर उतर गया पर उतर कर उसने बस की खिड़की में तलाशती नजरों से देखा। उसे वह लड़की नहीं दिखी वह निराश हो कॉलेज में चला गया। उषा का कॉलेज भी मेडिकल कॉलेज से थोड़ी दूरी पर ही था। वह अगले स्टोप पर उतरने के लिए आगे गेट के पास पहुँच चुकी थी। 

उषा कॉलेज पहुँची पर उसका मन अब भी उस चेहरे को याद कर रहा था। आज उषा का पढ़ाई में दिल नहीं लग रहा था। फिर भी किताब में सिर गड़ाये हुए वह हर लेक्चर को सुन रही थी। कॉलेज से घर आई पर उसे भूल नहीं पा रही थी। उधर मेडिकल छात्र भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था। दूसरे दिन फिर वही समय, वही बस, उषा बस में चढ़ी। आज उसे सीट मिल गई थी। उसने देखा वह जिस सीट पर बैठी है, उसी सीट के पास वही मेडिकल छात्र बैठा है। वह अंदर से सिहर उठी उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सच है। दोनों ने एक दूसरे को देखा दोनों ही अब अवाक् थे लड़का मुस्कुराया, उषा को भी बदले में मुस्कुराना पड़ा, लेकिन वह इतनी अधीर हो रही थी कि ठीक से बैठ भी नहीं पा रही थी। लड़के ने पहले बातचीत शुरू की। "तुम कॉलेज कर रही हो, कौन सा वर्ष है?" उषा भी तो यही चाहती थी कि वह बातें करें पर कैसे? चलो, अच्छा हुआ, उसी ने पूछ लिया। उषा बोली, "प्रथम वर्ष बीएससी कर रही हूँ और तुम? "मैं मेडिकल अंतिम वर्ष में हूँ, एमबीबीएस कर रहा हूँ। मुझे केशव माहेश्वरी कहते हैं, तुम्हारा नाम जान सकता हूँ?" जी, मैं उषा। ओके, उषा मेरा स्टॉप आ गया। उषा को लगा जैसे आज का समय पल में ही बीत गया था। उषा उसके साथ और समय बिताना चाहती थी, पर वह चला गया। उषा उसे बस से बाहर जाते हुए देखती रही। केशव भी एक हल्की मुस्कुराहट के साथ उषा से विदा लेकर कॉलेज गेट पर पहुँच गया। 

अब यह सिलसिला दिनों से महीनों में बदल गया। कई महीनों तक दोंनो इसी तरह बस में ही मिलते रहे और अच्छे दोस्त बन गए। फिर दोनों फोन पर भी बातें करने लगे, लेकिन उस समय केवल लैंडलाइन फोन हुआ करते थे। उषा और केशव फिर पार्क में मिलने लगे। घंटों एक दूसरे के साथ रहते धीरे-धीरे एक दूसरे को चाहने लगे। उषा का दिल तो कब से केशव को सपनों का राजकुमार मान चुका था और केशव भी उषा को चाहने लगा था। एक दिन केशव ने अपने प्यार का इजहार करते हुए उषा के मन की बात जाननी चाही, उषा तो जाने कब से यह सुनने के लिए तैयार थी। उसने भी केशव के प्यार को कबूल कर लिया। 

  अब परीक्षा के दिन नजदीक आ गए थे। उषा ने कॉलेज जाना बंद कर दिया था पर फोन पर बातें हो जाती थीं। केशव भी अंतिम वर्ष में श्रेष्ठ परिणाम के लिए मेहनत में जुट गया। अब भी सप्ताह में कभी- कभी बातें करते। फिर परीक्षा भी पूर्ण हो गई। दोनों ने मन लगाकर पेपर दिए परिणाम भी अच्छा रहा। अब बारी थी केशव के जॉब कि उसे एमबीबीएस करते ही किसी महानगर में अच्छे वेतन पर नौकरी मिल गई। उषा को अभी 2 वर्ष और कॉलेज करना था। केशव ने अतिहर्ष के साथ यह खबर उषा को सुनाई। उषा के हर्ष का कोई ठिकाना नहीं रहा। उषा बहुत खुश हुई, लेकिन अगले ही पल उसे केशव के दूर चले जाने का गम सताने लगा। वह रूआंसी हो गई। केशव ने उषा को समझाया। "तुम फिक्र मत करो, मैं बहुत जल्द वापस आऊँगा। तुम्हें ले जाने के लिए" यह सुन उषा पहली बार आज केशव के गले लग रो पड़ी। केशव ने उसे दिलासा दिया। "दिल छोटा ना करो, वरना मैं जा नहीं जाऊँगा।" उषा ने आँसू पौछते हुए मुस्कुराहट बिखेर दी।  अब केशव के जाने का दिन भी आ गया। कल केशव चला जाएगा। यह सोचकर उषा रात भर ठीक से सो नहीं पाई। उधर केशव को जॉब मिलने की खुशी थी तो दूसरी ओर उषा से दूर जाने का गम। सुबह उषा, केशव को छोड़ने रेलवे स्टेशन पर गई केशव उसे वहीं इंतजार करता हुआ मिला। आज उषा जी- भरकर केशव को देख लेना चाहती थी और केशव भी उषा के चेहरे से नजर हटा नहीं पा रहा था। दोनों की आँखें बहुत कुछ कहना सुनना चाहती थी, पर होंठ मौन थे। उषा की सजल आँखें प्रेम की प्रगाढ़ता को स्पष्ट कर रही थी। वहीं केशव का निश्छल प्रेम उषा को देखे जा रहा था। ट्रेन का समय हो चुका था केशव ने उषा का हाथ अपने हाथों में लिया। आज केशव का यह स्पर्श उषा अपने अंतर्मन में महसूस कर रही थी, उषा इस अनुभूति को हमेशा के लिए साथ रखना चाह रही थी। 

ट्रेन के हार्न ने दोनों को अलग कर दिया। केशव का हाथ छूटते ही उषा का दिल भर आया। उषा फिर सजल नेत्रों से केशव को देखती रह गयी, केशव को जाना पड़ा। केशव ट्रेन के गेट से उषा को आखिरी बार देख रहा था। उषा को नहीं पता था कि केशव से उसकी यह आखिरी मुलाकात थी। 

केशव जा चुका था। काफी देर तक उषा प्लेटफार्म पर बैठी रोती रही फिर समय बहुत हो जाने के कारण उठी और घर आ गई। अभी तक ना केशव के घर वालों को, ना ही उषा के घर वालों को दोनों के प्रेम के बारे में कुछ पता था। धीरे-धीरे समय व्यतीत हुआ। कुछ दिनों बाद केशव का फोन आया और उषा फूट पड़ी। वह इस तरह बिलख रही थी जैसे कितने समय का गुबार लिए जी रही हो। लेकिन तभी केशव वहाँ की, अपने रहन-सहन, महानगरीय जीवनशैली के आनंद को उषा को बताने लगा। अपने आप को संभाल कर वह केशव की बातें सुनने लगी। उसे एहसास हुआ कि केशव सिर्फ अपने बारे में बात कर रहा है। उसने एक बार भी नहीं पूछा कि कैसी हो? मेरी याद आई कि नहीं?और उषा ने फोन काट दिया। फिर केशव ने भी दुबारा फोन नहीं किया। आज उसे बातें करते हुए उसकी माँ ने देख लिया था। माँ कुछ अनहोनी के डर से उषा की शादी के बारे में सोचने लगी और उषा के बारे में पिता को सारी बात बता दी। उषा के पिता ने भी समाज के डर से उषा का विवाह जल्द से जल्द करना, ठीक समझा और उषा को देखने लड़के वाले आने लगे। अब उषा से रहा नहीं गया। उसने अपने और केशव के बारे में माँ को बता दिया। माँ ने कहा, "क्या केशव तुमसे शादी करेगा?, उसने अपने माता-पिता से बात की है?" उसने कहा, हाँ, माँ, हम एक दूसरे को बहुत चाहते है। केशव मेरे अलावा किसी और से शादी कभी नहीं करेगा फिर भी मैं आपकी तसल्ली के लिए केशव से बात करती हूँ। तब तक आप रुक जाइए।" माँ ने कहा, "ठीक है,बेटा, पर देर ना करना।" ठीक है माँ, मैं आज ही बात करती हूँ। उसने केशव को फोन लगाया। केशव से शादी की बात की तो केशव बोला, "देखो! उषा अब हमारी शादी नहीं हो सकती। मैं समाज में अपना एक रुतबा रखता हूँ। मेरा स्तर तुमसे काफी ऊँचा है। अब तुम कहाँ? और मैं कहाँ? उषा यह सुनकर अवाक् रह गई। केशव हमारे, हमारे प्यार क्या? तुम ऐसा नहीं कर सकते। कह दो के तुम मजाक कर रहे थे। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो, मैं जी नहीं पाऊँगी तुम्हारे बिना।" केशव बोला, "कहाँ तुम 18 वीं सदी की सोच वाली लड़की और मैं कहाँ 21वीं सदी का डॉक्टर, तुम्हारा मेरा कोई मेल नहीं।" यह सुनते ही उषा अपनी सुधबुध खो बैठी, उसके हाथ से फोन नीचे गिर गया। उसका दिल कांच के टुकड़ों की तरह टूट कर बिखर गया और वो अंदर से पूरी तरह से टूटा हुआ महसूस कर रही थी। उसकी माँ ने सब कुछ सुन लिया था। उन्हें समझते देर नहीं लगी। उन्होंने बहुत जल्द उषा का विवाह पक्का कर दिया और उषा की शादी एक अच्छे परिवार में कर दी गई। उषा ने भी अपने अतीत को शादी के फेरों के साथ ही अपने प्रेम को भी अग्नि कुंड में हवन कर दिया।

किस्मत से उषा को जो जीवनसाथी मिला था उसे बहुत प्यार करने वाला और खुशमिजा़ज था। उषा अपने पति के प्रेम तथा ससुराल वालों के मान सम्मान के कारण सब कुछ भूल चुकी थी। उसने प्यारे-प्यारे दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। बच्चे समय के साथ बड़े हो रहे थे। आज शादी को दस साल बीत चुके थे। वह अपनी गृह गृहस्थी में पूरी तरह व्यस्त हो गया थी परंतु आज अचानक जब उसने केशव की मौत का संदेश पढ़ा तो उसे वही आख़िरी मुलाकात सहज याद आ गयी, जब रेलवे स्टेशन पर बैठे उसके जाने को देखती रह गई थी। पुनः वही उसका जाना आज फिर महसूस कर रही थी और याद कर रही थी वही आख़िरी मुलाकात।


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