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पनाह..

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किसी गाँव में एक पंडित जी रहते थे, पंडित जी बहुत ही धार्मिक, भक्तवादी और पूजा पाठ करने वाले प्रवृति के थे। वो रोज़ सुबह तीन बजे उठकर गंगा नदी में स्नान करने चले जाते थे, उनका सालों से यह नियम बन गया था। वो सुबह तीन बजे ही गंगा स्नान को पहुंच जाते थे।

एक सुबह पंडित जी की नींद देर से खुली 3:30 बजे करीब में, पंडित जी उठे अपना लोटा लिया और तेजी से गंगा स्नान के लिए निकल पड़े। पंडित जी तेज कदमों से चले जा रहे थे, गंगा नदी पंडित जी के घर से तकरीबन 10 से 12 किलोमीटर की दूरी पर थी। पंडित जी देर होने के कारण तेजी से चले जा रहे थे, उन्हें रास्ते में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि अंधेरा बहुत था और देर होने के कारण पंडित जी बहुत तेजी से चले जा रहे थे। अचानक से पंडित जी का पैर एक पत्थर से टकराया और पंडित जी रुक गए। पंडित जी ने देखा पत्थर से कुछ ही दूरी पर एक बहुत बड़ा सौंप चला जा रहा था। पंडित जी सौंप को देखकर अंदर से कांप उठे क्योंकि वह बहुत ही बड़ा और पुराना सौंप था। पंडित जी तब तक वहीं रुके रहे जब तक सौंप रास्ते को पार करके झाड़ियों में न चला गया। सौंप के चले जाने के बाद पंडित जी ने उस पत्थर को उठाया और अपने साथ लेकर गंगा स्नान को चल दिए। पंडित जी नदी पहुँचकर अपने साथ-साथ पत्थर को भी अच्छे से गंगाजल में धोया और उस पत्थर को लेकर घर को चल दिए। पंडित जी मन ही मन सोच रहे थे कि इस पत्थर की वजह से ही पंडित जी की जान बच गई अगर वो इस पत्थर से न टकराए होते तो उनका पैर उस सौंप के ऊपर ही पड़ता और सौंप उन्हें काट लेता और पंडित जी नहीं बच पाते और उनकी मृत्यु हो जाती। पंडित जी के लिए वो पत्थर भगवान से कम नहीं था। और वो भगवान समझे भी क्यों नहीं उस पत्थर के कारण ही तो पंडित जी की जान बची थी। पंडित जी उस पत्थर को उठाकर घर को आ रहे थे, रास्ते में उन्हें एक पीपल का पेड़ दिखा, पंडित जी ने उस पत्थर को उस पेड़ के नीचे रख के उसका जलाभिषेक किया और फूल चढ़ा के पूजा की। और घर पहुंच कर पंडित जी ने सारा वृतांत अपने घर वालों और गाँव वालों को बताया। पंडित जी की बात सुनकर गाँव वाले उस पत्थर को देखने उस पीपल के पास गए, फिर क्या था उस दिन से पूरा गाँव उस पत्थर को पूजने लगा। लोगों की श्रद्धा इतनी बढ़ी कि देखते ही देखते उस पीपल के पेड़ के पास एक मंदिर बन गया। जिसके बाद दूर-दूर से लोग उस मंदिर में पूजा करने आने लगे।लोग उस मंदिर में आकर मन्नत मांगते और जब लोगों की मन्नत पूरी हो जाती तो वो उस मंदिर में घंटा चढ़ा जाते।

धीरे धीरे लोगों की श्रद्धा इतनी बड़ी की मंदिर का बरामदा घंटों से भर गया मंदिर के बरामदे में हर तरफ बड़ा बड़ा घंटा लोहे की जंजीरों से टंगा हुआ था।


उस मंदिर के थोड़े ही दूर पर एक बुजुर्ग इंसान रहता था। अकेला था उसके परिवार में और कोई नहीं था, एक छोटी सी झोपड़ी लगाकर वह वर्षों से वही रह रहा था। जब मंदिर का निर्माण हो रहा था उस पीपल के पेड़ के पास तो सबसे ज्यादा खुशी उस बुजुर्ग इंसान को हो रही थी।

वो बुजुर्ग इंसान ये सोचकर बहुत खुश था, के इतने दिनों से वह इस वीराने में अकेला ही रहता था इस मंदिर के बन जाने से यहां लोग आएँगे पूजा करेंगे और थोड़ा बहुत प्रसाद उसे भी मिल जाया करेगा जिन्हें खाकर वह अपना गुजारा कर लिया करेगा।


जब दूर-दूर से लोग उस मंदिर में पूजा करने आते तो वह बुजुर्ग इंसान नि:शब्द होकर उन लोगों को देखा करता था। अपनी आँखों में एक आस लिए वो उन लोगों को देखा करता था जो उस मंदिर मे पूजा करने आते थे। शायद मंदिर मे प्रसाद के रूप मे चढ़ाए गये मेवा, फल में से मुझे भी कोई थोड़ा दे दे। 

वो मंदिर से दूर बैठकर बस इसी आस में लोगों को देखा करता था, लोग दूर-दूर से आते थे उस मंदिर पर दूध चढ़ाते, फल मेवा चढ़ाते थे, और चढ़ा के चले जाते थे। पर किसी की निगाह उस बूढ़े इंसान पर नहीं जाती थी।

वो सोचता... पूजा करके जब लोग चले जाएंगे तो मंदिरों में जो प्रसाद के अवशेष बचे होंगे वह उन्हें उठाकर खा लिया करेगा। पर नीची जात के होने के कारण उसमें इतनी साहस नहीं थी कि वह मंदिर में जा सके। क्योंकि ऐसा करना गुनाह माना जाता और उसे उस गुनाह की कठोर सज़ा दी जाती। इसलिए वो मंदिर से दूर ही बैठा करता था, जब वो मंदिर के पास तक नहीं आ सकता था फिर मंदिर में कैसे जा सकता था।


दिन गुजरते गए, एक रात बड़ी ज़ोर की आंधी और बरसात हुई जिसमें उस बुजुर्ग इंसान की झोपड़ी तबाह हो गई। बारिश में भीगता रहा घंटों तक पर उसमे हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो मंदिर में जाकर छुप जाए। तेज बारिश हो रही थी ठंडी हवा चल रही थी, ठंड से कांपने लगा फिर ना चाहते हुए भी वह मंदिर के बरामदे में चला गया। मंदिर का दरवाज़ा बंद था इसलिए वह मंदिर में तो जा नहीं सकता था बस मंदिर के बरामदे में बारिश और ठंडी हवा से बचने के लिए छिप गया। जितनी तेज बारिश हो रही थी उतनी ही तेज हवा चल रही थी, एक तो घना अंधेरा उस पर जोरों की बारिश और आंधी तूफान चलना बहुत ही भयावह स्थिति थी।

वो बुजुर्ग इंसान बरामदे के कोने में चिपक के ठंडी हवाओं से बचने के लिए बैठा हुआ था। तूफान इतना तेज था कि अचानक से जो बरामदे में लोहे के घंटा टांगा हुआ था उसकी जंजीर टूट गई और उस बुजुर्ग इंसान के सर पर गिर पड़ा। घंटा गिरने से उस बुजुर्ग इंसान की उसी पल मृत्यु हो गई उस रात पूरी रात बारिश और हवा चलती रही ।

अगली सुबह जब पंडित जी और आसपास के लोग उस मंदिर में पूजा करने पहुंचे तो उन्होंने उस बुजुर्ग इंसान की लाश देखी। फिर क्या था लोगों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गई। फिर क्या था हर इंसान का अपनी सोच के मुताबिक उस बुजुर्ग का उस मंदिर मे मरना बुरा ही माना जा रहा था। कइयों ने तो अपने आप ही एक मनगढ़ंत कहानी बना ली की हो न हो ये आदमी रात में घंटा चुराने आया होगा, इसीलिए भगवान ने घंटा इसके सर पर गिरा के इसे मृत्यु दे दी।


किसी ने उसकी तबाह हुई झोपड़ी को नहीं देखा, किसी ने उस भयावह रात की स्थिति को महसूस नहीं किया, किसी ने ये नहीं सोचा कि रात में इतनी तेज बारिश और आंधी तूफान चल रही थी। जिससे इस बुजुर्ग इंसान की झोपड़ी तबाह हो गई है और ये बारिश और तेज हवा से बचने के लिए मंदिर में आया होगा। तेज आंधी और तूफान के कारण मंदिर में टँगे घंटे की जंजीर टूट कर इसके सर पर गिर गया होगा जिससे इसकी मृत्यु हो गई है।


उस बुजुर्ग इंसान की लाश को हटाने के बाद, मंदिर को शुद्ध करने के लिए गंगाजल लाया गया और मंदिर को धोया गया। और फिर मंदिर और मंदिर में बस रहे उस पत्थर रूपी भगवान की गंगाजल से अभिषेक किया गया।

उस घटना के बाद उस मंदिर में आने वाले भक्तों की तादाद और बढ़ गई और उस मंदिर में रह रहे उस पत्थर के भगवान पर लोगों का विश्वास और श्रद्धा और भी बढ़ गया ।

आखिर इंट और सीमेंट से बनी उस मंदिर में "पनाह" की ज़रूरत सबसे ज़्यादा किसे थी ।

उस पत्थर रूपी भगवान को या फिर उस बेबस, लाचार, बेघर बूढ़े इंसान को.....


  





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