अधूरी प्रेम कहानी
अधूरी प्रेम कहानी
हर किसी को जिंदगी में एक बार प्यार ज़रूर होता है और ऐसी उम्र मे होता है, जहाँ प्यार का मतलब पता नहीं होता। बस हो जाता है, वैसे प्यार मे मतलब गैरवाजिब होता है। प्यार होने का एहसास हमे तीनों जहाँ की सैर करता है। हम ख़्वाबों मे अपनी दुनिया बसा लेते है, हमे महबूब के अलावा किसी चीज़ से मतलब नहीं होता। उसका दीदार हमारे दिल को सुकून दिलाता है, उसकी हर बात हमारे कानों से उतरकर दिल को छूने लगाती है। उसकी हँसी मानो सारी दुनिया की ख़ुशी समेटकर हमारे आँचल मे डाल दी हो, उसका रोना जैसे खुदा की रुस्वाई। उसका चलना, रुकना, फिर चलना दिल के तार छेड़ देती है, झुकती पलकें लज्जा का एहसास दिलाती है, आँखों की गहराई मे डूब जाने का दिल करता है।
सारा जहां एक तरफ और महबूब की चाहत एक तरफ।
कुछ ऐसा ही हुआ था मेरे जीवन मे, उन दिनों मैं अपनी नई जॉब की सेवा मे था, थी तो छोटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी। अकाउंट असिस्टेंट के जॉब मे वैसे कोई चैलेंज नहीं था। टाइम पे आना, टाइम पे जाना, टाइम पे खाना, सुकून भरी जिंदगी थी।
लंच टाइम के बाद टहलने के लिए काफी वक़्त मिलता था, कुछ महीने बीत गए। एक दिन अचानक मेरी नज़र ऑफ़िस के बाहर एक लड़की पर पड़ी, मेरा लंच टाइम और उसका वहां से गोइंग टाइम लगभग एक ही था। मैंने कभी गौर से उसको देखा नहीं, लेकिन आज अचानक नज़रे मिली, और लगा सारा जहाँ मिल गया। फिर ये सिलसिला चलता रहा, प्यार व्यार कुछ पता नहीं था। उसका दीदार मेरी जिंदगी बन गयी थी, एक दिन भरत मेरे पास आया, इधर उधर की बातें चली फिर उसने अपनी बात निकाली, जिसके लिए वह आया था उसने दीपा की बात निकाली। मैं कितना उसे चाहता हूँ ये पूछा, मैं क्या बताता ? मेरे जीवन मे पहली बार किसी लड़की ने मुझे चाहा था, वह एहसास मेरे लिए किसी धन दौलत से कम नहीं था। कोई लड़की ने मुझे मिलने की इच्छा जताई थी, उसी दिन शाम को फोन आया आवाज़ मे अजीब सी घबराहट थी, बातों मे कम्प्पन थी। उसने अपना नाम बताया, फिर मिलने की बात हुई। शायद वह शुक्रवार था, सुबह मैं जल्दी उठ गया। तैयारी कर ली, पिताजी के लिए और मेरे लिए एक ही वक़्त माँ लंच बॉक्स बनती थी। मेरे जल्दी उठने का कारण पूछने पर ऑफ़िस का नाम बताया, आज मुझे उसे मिलाना था। ज्यादा वक़्त जाया किए बिना मैं घर से निकल गया। बस की बजाय मैंने ऑटो से जाना पसंद किया, बीस पचिस मिनट में मैं TYPEWRITING COMMERCIAL इंस्टिट्यूट पहुँच गया। सुबह की साड़े आठ बजने मे और पांच मिनट बाकी थे।
और वह बाहर आयी साथी सहेलियों को उसने बाय किया, उसके चेहरे पर घबराहट साफ़ नजर आ रही थी। मैं कुछ कदम चला, फिर उसने साथ दिया, थोड़ी दूर जाकर एक कोने पर मैंने अपने चाहत का इज़हार किया उसने भी चाहत मे हामी भरी, फिर उस दिन शाम को उसने फ़ोन किया १९९८ में मोबाइल नहीं थे। ना ही उसका कोई नंबर मेरे पास था। बस उसका मुँहबोला भाई था ..भरत मेरे लिए तो उससे मिलना जितना मुश्किल था, उतना ही आसान था, अब मैं अपना लंच जल्दी लेने लगा, फिर वाशरूम जाने की बहाने हमलोग ५ मिनट की लिए सही , रोज़ मिलने लगे। नज़दीक ही कोई इंडस्ट्री मे वह काम करती थी।
आप इसे प्यार कह सकते हो या नहीं, ये मुझे पता नहीं, लेकिन वह प्यार भरा एहसास जिंदगी बना देता है।
उसकी सहलियों को ये बात पता चली, कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाना था, तो जुहू बीच जाने की बात हुई। उस दिन हमलोग खूब घूमे, ढेर सारी बातें हुई, मौज मस्ती मे शाम ढलने लगी तो पाँव वही रुक गए। लेकिन जाना तो जरुरी था, हम साथ चले लेकिन हमसफ़र ना हो पाए।
दीवाली की सुबह हमारी कंपनी चालू थी, सबको बोनस और मिठाइयाँ मिलने वाली थी। नए कपड़े पहनकर मैं भी ऑफ़िस पहुंचा, दीपा की छुट्टी थी, मौका पाकर एक मिठाई (काजु कतली ) मैंने उसे खिलाई। वह दिन अच्छा चला गया, हम ऑफ़िस से निकल ही रहे थे तो फ़ोन की रिंग बजी, मैंने फ़ोन उठाया, बड़ी दर्द भरी आवाज़ मे उसने कल की मुलाकात की तारीख तय की, उसकी परेशानी उसकी बातों से मेरे दिल तक पहुँच रही थी, आज हवा का रुख बदला बदला नजर आ रहा था। कल के फ़ोन कॉल को लेकर मे रात भर ठीक से सो नहीं पाया, इसके कारण सर चढ़ा हुआ था, आज ट्यूशन नहीं था। कुछ ही देर मे वह आयी, फिर हम एक होटल मे चाय पीने बैठ गए। 'हम फिर नहीं मिलेंगे','घर पर पता चल गया है '' मेरे बड़ी बहन ने रेलवे ट्रैक पर इसी चक्कर मे सुसाइड किया था।' मुझे तो कुछ पूछने का या कुछ बताने का मौका ही नहीं मिला ना तो कुछ बात बन पायी वह चली गयी, मैंने उसे रोका भी नहीं वह क्यों चली गयी ? मुझे पता नहीं ? कल रात उसके घर में क्या बात हुई , मुझे पता नहीं और क्या कारण था, मुझे पता नहीं ?
लेकिन मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूँ की वह मुझे प्यार करती थी, वह मेरे घर भी आकर चली गयी थी मेरा तो मुझे पता नहीं, लेकिन उसका प्यार सच्चा था।
ये मेरा पहला प्यार अब 'अधूरी प्रेम कहानी ' बन गया है, आज मे लिख रहा हूँ -उस पुरानी यादों मे खो चुका हूँ ।