बचपन
बचपन
जीवन की आपा धापी में भाग-भाग कर मैं,
थकने लगा रातों को सोते जाग-जाग कर मैं।
वो तितली का पंख पकड़ना आने लगा है याद,
वो चॉकलेट के लिए मैं कैसे करता था फरियाद।
वो हृदय को कम्पित करते थे कैसे गुब्बारे,
वैसा विस्मय कहाँ है संभव कैसे भी हो नजारे।
वो चंदा मामा की रातेें, दादी की परियों की बातेें,
इंद्रधनुष पे विस्मित होना, जब भी होती थी बरसातें।
काश कोई लेके चलता मुझको बचपन की छाँव,
वो आम गुठली की सीटी और कागज की नाव।
कि जामुन के पेड़ बैठ फिर मन भर जामुन लाता,
माता के हाथों से चावल भाग-भाग फिर खाता।