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Shalu Dhillon

Children Tragedy

5.0  

Shalu Dhillon

Children Tragedy

अमिया का बाग़

अमिया का बाग़

2 mins
713


एक था मैं, इक दोस्त था मेरा, इक अमिया का बाग़,

मेरे नटखट बचपन की है इक भूली बिसरी याद।

मैं और वो दोस्त मेरा अक्सर उस बाग़ में जाते थे,

कच्चे पक्के आम चुरा कर हम वहाँ से खाते थे।


घर पर आम का ढेर लगा था, पापा बाज़ार से लाते थे,

पर चोरी के आम ना जाने क्यों कुछ अलग स्वाद दे जाते थे।

बुरा काम है चोरी करना कहती एक किताब थी,

पर बचपन की मस्ती थी वो बात कहाँ हमें याद थी।


दोस्ती करो भरपूर निभाओ एक कहानी कहती थी,

वही बस एक बात थी जो मेरे मन में रहती थी।

दोस्त वो मेरा आसानी से पेड़ों पर चढ़ जाता था,

शाख़ हिला कर पेड़ों की बस आम तोड़ता जाता था।


मेरा काम था गिरे हुए उन आमों को चुनना,

और साथ ही माली के बढ़ते क़दमों को सुनना।

कितनी बार हम माली की आँखों में चढ़ जाते थे,

इस से पहले वो हम को धार ले हम भाग खड़े हो जाते थे।


उसको आता देख कर मैं दोस्त को चेताता था,

हाथ के सारे आम छोड़ बस उसे बचा ले जाता था।

आम छोड़ कर आने पर दोस्त बुरा सा मुँह बनाता था,

उसका मन छोटा न हो अपना हिस्सा उस को दे आता था।


फिर इक रोज़ हुआ कुछ ऐसा मुझ को पेड़ पर चढ़ना था,

आम तोड़ना मेरे ज़िम्मे दोस्त को उनको चुनना था।

और तोड़ो और गिराओ यही वो रटता गया,

धीरे-धीरे ध्यान उसका माली से हटता गया।


उसको पता नहीं चला कब माली नींद से जाग गया,

उसको आया देख कर वो दोस्त आम उठा कर भाग गया।

दोस्त ने मुड़कर भी नहीं देखा वो आगे बढ़ गया,

और पेड़ पर लटका मैं माली के हत्थे चढ़ गया।


माली ने फिर डंडे से ख़ूब की पिटाई,

उसके बाद पापा के आगे पेशी भी करवायी।

कौन-कौन था साथ तुम्हारे माली कहता जाता,

पढ़ी हुई थी वो एक कहानी,

दोस्त का नाम कैसे मुँह पर आता।


मुझ को पिटता देख दोस्त का चेहरा भी उतर गया,

पर जब उस से पूछा कमबख़्त साफ़ मुकर गया।

मौसम बदले बरसों बीते वक़्त अभी कुछ और है,

ज़िंदगी भाग रही है ज़िम्मेदारियों का दौर है।


तब भी अक्सर चुभ जाती थी

वो जो इक बात पुरानी थी,

पगला मन अब भी कहता है,

दोस्त ने नहीं पढ़ी वो कहानी थी।


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