बाल जिज्ञासा
बाल जिज्ञासा
छोटे छोटे हाथ हमारे,छोटे से हैं पांव,
नही जाऊं खलियानों में,मुझे चाहिए छांव।
भरा टोकरा सर रख -रख कर कंधे हमरे दुखते हैं,
पावों में पड़ गए जो छाले ,वो भी हम पर हंसते हैं।
सब बच्चो के दो - दो होते मेरा एक ही नाम,
नही जाऊं खलियानों में मुझे चाहिए छांव।
हीरा,रजनी ,राधा रेखा देखो हमे चिढ़ाते हैं,
उनके जूते मोजे बस्ते कपड़े हमें रिझाते हैं।
विनती करता हूं मैया अब तू लिखवा दे मेरा भी नाम,
नहीं जाऊं खलियानों में,मुझे चाहिए छांव।
स्कूलों की घंटी सुनकर मन हिचकोले खाता है,
अब पूछूं मैया मैं तोसे,मैं क्यू नही जा पाता हूं।
मुफ्त मिल जाएं सभी किताबे,नही लगते हैं दाम,
नही जाऊं खलियानों में मुझे चाहिए छांव।
भोर भए कागा जब बोले,झट से हमें जगा देना,
झटपट -सरपट सब मैं कर लूं,
बस कजरा तू ही लगा देना।
रोटी के तू कर मत फिकरा, खाली थाली थमा देना,
पढ़ते - लिखते दिन कट जाएं हो जायेगी शाम।
नही जाऊं खलियानों में मुझे चाहिए छांव।।
