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नशा...नाश!

नशा...नाश!

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वो कहते थे

क़द्र करते थे

वो कहते थे

प्यार करते थे

समक्ष अनगिनत

ताने देते थे

खरी खोटी गाते

रोम रोम जला जाते


एक पल वो कहते थे

पसंद तुम हमारी

दूसरे ही पल जड़

तमाचा देते थे

हँसते थे कहते थे

नीची तू क्या औक़ात तुम्हारी ?


कभी उनके साथ के लिए

तड़पते थे हम सोनिया….


खाते थे मार

ख़ुद को तोड़ जाते थे


हक़ से वो कहते थे

चुप चुप हम लाठी सहते रहते थे ...


दर्द में थे फिर भी

दर्द में ना थे

कराहते थे फिर भी

कराहते ना थे …


चले गए वो छोड़ कहीं चले गए

घर साथ परिवार सब छोड़

चले गए….


आज एक आह सी हुई

घंटी ने दिन की तान थी बजायी


एक आवाज़ सी आयी …..


वो तरसते हैं मिलने को

आज रोते हैं तड़पते हैं

बात करने को

राख कर ढूँढते हैं

उस हसीन तन को

उस प्यारे मन को


रातें बितायीं रो के

दिन बिताए रो के

वो हसीन नशों में सोते थे

हम पुरानी यादों में खोते थे


आज वो रोते हैं

आज वो ना सोते हैं

आज यादों के मोती

निकाल पिरोते हैं


क़द्र क्या थी

क्या है अब पछतावा

प्यार क्या था

क्या है अब छलावा

हुक़ूमत क्या थी

क्या है अब ज़रूरत


वो टूट रहा है

वो बिखर रहा है

लम्हा है पल है

दिन है या साल

पता नही…..


वो हाथों से छूट रहा है

पता नहीं…..


बच्चों का पापा

बहन का भाई

माँ बाप की लाठी

पत्नी का साथी


क्या बचाएँ …….!!!

कैसे….

कैसे बचाए…….

ये नशे से उसे कैसे छुड़ाए..।।



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