गुमराह
गुमराह
गुमराह हो रहे हैं युवा 21 वीं सदी की चमक दमक में,
किसी को शराब ने किसी को धुऐं ने घेरा है,
और कोई ड्रग्स की चपेट में बेहोश पड़ा है,
नहीं है परवाह स्वयं की, नहीं परिवार की फ़िक्र है।
नशे के नियंत्रण में समस्त जीवन व्यर्थ हो रहा है,
जल रहे हैं फेफड़े, लीवर भी कहाँ ठीक है,
ड्रग्स लेने वालों के रक्त में ज़हर का समावेश है,
धुआं धुआं है हर तरफ, परिवार गमगीन है।
कैसे निकालें मौत के कुऐं से सब विचाराधीन है,
जानते हैं युवा कि ज़हर पी रहे हैं हम,
ऐसे कैसे जी रहे हैं हम, जीते जी मर रहे हैं हम,
किंतु नहीं रोक पाते स्वयं को, हद से आगे निकल गए।
डरावना है मंजर स्वयं के हाथ में है मौत का खंजर,
परिवार ख़ौफ में है, परिवार के चिरागों का गिर गया है मनोबल,
बरबाद हो रही है देश की जवानी,
कैसे बचायें नशे की लग गई है बीमारी।
देश के हर युवा को नशे के कहर से बचाना है,
परिवार के बुझते चिरागों को सही राह पर लाना है,
नशे का व्यापार करने वालों के इरादे पस्त करना है,
और देश के भविष्य को हर हाल में नशे से मुक्त करना है।