जिंदगी का पतझड़ और बसंत
जिंदगी का पतझड़ और बसंत
जिस तरह से पेड़ों में पतझड़ आता है ।
पत्तियां झड़ जाती हैऔर उसके बाद में नयी आती है।
और बसंत आ जाता है।
उसी तरह से जिंदगी भी चलती रहती है।
बचपन जवानी और बुढ़ापा।
बचपन और जवानी बसंत की तरह होते हैं।
और बुढ़ापा अगर ढंग से ना दिया जाए तो पतझड़ हो जाता है।
इसीलिए जिंदगी को जब हम प्रौढ़ावस्था में जाते हैं।
तभी जिंदगी के पतझड़ में हम बिल्कुल झड़ना जाएं इसकी तैयारी कर लेनी पड़तीहै।
और नहीं तो युवा वर्ग हमको पतझड़ और बेकार समझ कर अपनी जिंदगी से निकाल फेंकते देर नहीं करते हैं।
इसीलिए इस पतझड़ के बाद बसंत आने के लिए हमको अपनी हिम्मत हौसले और स्वास्थ्य तीनों को कायम रखना होता है ।
तभी जिंदगी, जिंदगी का पतझड़ और जिंदगी अपने अपने आप में खुशी ला कर वापस खुशी की छांव बन जाती है ।
आपके अंदर ही धूप छांव सब है। कभी जिंदगी में दुख की धूप आती है।
कभी सुख की छाया आती है।जिंदगी बहुत नाच नचाती है।
अगर समय अच्छी तरह से सुख पूर्वक बीत जाता है, तो जिंदगी बहुत ही अच्छी लगती है।
पर अगर जीवन सुख पूर्वक नहीं बीतता है तो बहुत दुख होता है और तकलीफ होती है ।
और कभी-कभी हमारे बहुत विश्वासु जिनके ऊपर हम बहुत विश्वास करते हैं।
वही लोग अगर हम को धोखा दे जाते हैं तो जिंदगी एक बोझ लगने लगती है।
जिंदगी जियो तो ऐसे जियो कि पुरस्कार लगे।
ना कि ऐसे ही बोझ लगे।
इसके लिए अपने आप में हिम्मत और हौसले की जरूरत होती है।
कोई भी परेशानी आए तो उसका डटकर मुकाबला करके उसमें से निकलने की जरूरत होती है।
मन में वापस बसंत को ले आने की जरूरत होती है।
