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उनकी नज़र में तुम

उनकी नज़र में तुम

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उन्होंने तुम्हें सुंदर कहा ,

तुम्हारी तारीफ की ,

और तुम हार बैठी अपनी भावनाएं ,

उन पर जिन्हें कद्र ही नहीं तुम्हारी भावनाओं की

वो छलते रहे हैं तुम्हें सदियों से ,

और तुम छलावे में जीती आई हमेशा ...

पर कब तक यूँ छली जाती रहोगी तुम ,

वो समझते क्या हैं तुम्हें ?

बेवकूफ़ !!

हाँ बेवकूफ़ ही तो हो ,

जो महज उनकी एक नजर के लिए,

घंटों आईने के सामने गुजार देती हो ..

अगर रूठ जाएं वो तो मनाने में ,

अपने स्वाभिमान को भी ताक पर रख देती हो ...

वो मनमर्ज़ियाँ करते रहें तो अच्छा है,

तुमने खुली हवा में सांस भी लेनी चाही

तो बेहया हो गयी तुम ....

तुम श्रृंगार करो क्योंकि उन्हें अच्छा लगता है

तुम साड़ी पहनो क्योंकि "तुम पर फबती है," उनकी नजर में ...

क्या उन्होंने खुद भी, बदले है ,उसूल तुम्हारे लिए ?

कभी छोड़ा है अन्न जल, तुम्हारे लिए ?

किया है कभी समझौता, तुम्हारे लिए ?

क्यों ????

कभी सोचा है तुमने ?

अरे !!

सोचना भी मत तुम !!

तुम्हारा सतीत्व नष्ट हो जाएगा,

तुम्हारे प्रति उनकी श्रद्धा कम हो जाएगी ...

क्योंकि तुम तो देवी हो ,

हाँ !! देवी ,,,

प्रेम, करुणा,दया, क्षमा,की मूर्ति ,

और मूर्तियां पत्थर की होती है

हाड़ मास की नही, जिन्हें दर्द हो .....



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