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प्रणव कुमार

Inspirational

4.9  

प्रणव कुमार

Inspirational

चले चलो

चले चलो

1 min
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चले चलो

कुछ रास्तों को पार कर,

कुछ पत्थरों को तराश कर।

कुछ बाजियां हार कर,

सबक आंखों में उतार कर।

चले चलो।


इस द्वेष भेष के काल में,

विस्मित से कपाल में,

भूत के उपहास में,

भविष्य के आभाष में,


वर्तमान के निष्ठुर वार में,

कुपित संसार के व्यवहार में,

आघातों को पार कर,

हर वार का संहार कर,

चले चलो।


चंद्रहीन अमावस की रात में,

जुग्नुओं की बारात बन।

जब विचार नंगे हो जाए,

तू शास्त्र ज्ञान सा कपास बन।

जब प्रेरणा कम पड़ने लगे,

तू पिता का त्याग बन।


जब क्रोध सर पे छा जाए,

तू मातृत्व बोध का प्रकाश बन।

कुपित विचारों का त्याग कर,

त्याग को प्रेम मान कर,

चले चलो।


जब बूंद दिखे,

चल बैठ सोच,

कैसे इससे दरिया बना,

दरियाओं ने रास्ता चुना,

पहाड़ कटे,चट्टान कटे,


बूंदों से बनी धाराओं से,

जाने कितने उफान बने,

जब बूंद चुप ना सोया है,

फिर तू क्यों बंद आंख से रोया है ?


अहं की छाया त्याग कर,

सद उद्वेग को

अपना मान कर,

चले चलो।


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