नारी बन नारायणी
नारी बन नारायणी
खुद को ज़िंदा रखना है मुझे अपने अंदर
नहीं मर-मर के जीना है अंदर ही अंदर,
नारी हूँ दिखाना है नारायणी बनकर
पूजे ना चाहे कोई अब मुझको परवाह नहीं,
खुद के वजूद को उपर उठाना है मुझे...
ना सहने है पग-पग ताने उल्हाने,
एक एक को मुँह पर सुनाना है मुझे,
बहुत उछाल लिये बलात्कारियों ने
सिक्के अपनी हवस के,
गर्विता की गरिमा से मिट्टी में उसे मिलाना है।
दहेज़ के भूखे भेड़ियों ने
बहुत जलाया मासूम को
अब गिन-गिनकर सबको जलाना है।
निर्ममों ने नहीं बक़्शा
छोटी मासूम कलियों को
माँ हूँ बेटी की बर्बादी का बदला
रोंदकर उसे चुकाना है....
चुटकी सिंदूर भरकर बन बैठे है सरताज जो
लिये अधिकार दमन का
उन पतियों का शासन हिलाना है...
पग-पग अग्नि परिक्षा देती रही,
सीता से लेकर सुष्माएँ
कहने को कहते हैं बदल गया ज़माना,
पर पूछो उनसे जिनके उपर
ये सब आफ़त बीती है
कुछ भी तो नहीं बदला
ईंट उठाने वाली से लेकर
कोर्पोरेट जगत की नारी भी,
किसी न किसी दरिंदे से आज भी सतायी है...
बहुत लिख ली कागज़ों पर नारी दमन की दास्तान,
अब हाथ हथियार उठाने की बारी है,
मत बनो अबला, बेबस, बेचारी, लाचार तुम
काली चंड़ी का रुप लो
कर दो हैवानों का बुरा हाल....
दमन करना ज्यूँ पाप है तो
दमन सहना महापाप,
तू माता है, तू बेटी है, तू बहन, तू भाभी है,
नहीं चलने वाली ये दुनिया,
तुझ बिन सब लाचार है..
पहचान ले अपनी हस्ती को तू
अपने आप में महान है।।