मृत्यु दिवस
मृत्यु दिवस
आज का दिन बड़ा ख़ास है
क्योंकि इसमें मेरा मृत्यु दिवस होने की संभावनाएं छुपी हैं।
इस संभावना का आंकड़ा कुछ भी हो
पर शून्य नहीं सकता है
क्योंकि मानव कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले
पर मृत्यु की घटना का अपनी जिन्दगी से
निकाल फेंकने की कला कभी सीख नहीं सकता है।
आम तौर पर लोग अपना-अपना जन्म दिवस
एक विशेष दिन के रूप में मानते हैं
बरसों पहले जो अप्ररिवर्तनीय घटना हो चुकी हैं
उसी पल की खुशियां दुबारा जिलाते हैं
कुछ केक , तो कुछ खीर पूरी खाते हैं
कुछ मोमबत्तियां जला कर बुझाते हैं
बूढ़े तक इस दिन के लिए अक्सर बच्चे बन जाते हैं
और उनके चाहने वाले खूब हो हल्ला मचाते हैं।
लोग मौत को टाल तो नहीं सकते
पर हर जतन करके थोड़ा सा दूर तो धकियाते हैं
जेब में अगर पैसा हो तो चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठाते हैं
मृतप्राय शरीर का भी वेंटिलेटर पर डाल कर या डयलसिस करकर
सब्जी की तरह बिस्तर पर लेट कर भी
ज़िन्दगी का मजा उठाते ह
ैं।
पर मैं मूर्ख और अज्ञानी
हर दिन अपना मृत्यु दिवस मनाता हूँ
और ख़ुशी के मौके का साल गरीबों की तरह एक दिन न मना कर
अमीरो की तरह से ठाठ से हर रोज मनाता हूँ।
दिन ही क्या ,मैं तो हर घड़ी हर पल को
उत्सव की तरह मनाता हूँ और
मन के हर अँधेरे कोने में मोमबत्तियां
बिना गिने ही जलाता हूँ
श्रेष्ठतम वस्तुओं को अपने आस पास से ग्रहण कर आत्मा को सोमरस पिलाता हूँ
औरों को न बुला कर अकेले ही खुशियां मनाता हूँ
दिल की धड़कन को तालियां समझ कर
सांसों की सरगम पर अपने ही लिखे गीतों को गाता हूँ।
मान-अपमान, यश-अपयश,हानि-लाभ,सुख-दुःख के झमेलों से ऊपर उठ कर
आनंदपूर्वक अपना जीवन बीतता हूँ
जिन्दगी के उत्सव का आनंद लेते हुए
अपनी ही चाल से चलते हुए हर पल
मृत्यु की तरफ कदम बढ़ाता हूँ
इस तरह काल के गाल में समाने की
प्रक्रिया को और आसान बनता हूँ
अरे वाह, अपनी हर सांस के साथ
ये मैं कहाँ चला जाता हूँ।