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Preeti Dhiman

Tragedy

4.4  

Preeti Dhiman

Tragedy

काश की ऐसा हो पाता !

काश की ऐसा हो पाता !

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काश की ऐसा हो पाता !

बुझते हुए चिरागों को

फिर से रौशन कोई कर पाता।

बढ़ती हुई सलाखें चीर

कोई झोंका इक खुशबू लाता।

फिर जल उठती लौ

उन बुझी हुई मशालों में।

फिर न खोती ज़िंदगी

उन उलझे हुए सवालों में।


काश, रुक गयी होती वो कश्ती,

मौत जिसपे सवार थी।

काश, मुरझाई ना होती वो कलियाँ,

फूल बनने को जो बेक़रार थीं।

काश, बढ़े न होते वो क़दम,

राह बनाई जिसने जहन्नुम की।

काश, बिके न होते वो कमज़ोर मन,

रुकी रफ़्तार जिससे देश की धड़कन की।


आज मुट्ठीभर हैवानों से

ख़ौफ़ज़दा सारा संसार है।

समंदर को डरा रही

आज बूँद की ललकार है।

चंद इरादों से आज

सारी क़ौम शर्मसार है।

ज़िहाद के मायने समझने का

शायद अब अल्लाह को भी इंतज़ार है।

अगर मासूमों के खून से धुलकर होता

जन्नत का दीदार है,

तो ऐसी जन्नत से बेहतर

जहन्नुम का दरबार है।


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