ये कविता आतंकवाद से जहन्नुम बनती ज़िंदगी की आवाज़। ये कविता आतंकवाद से जहन्नुम बनती ज़िंदगी की आवाज़।
आपके लायक नहीं हम, ना औरों के लायक। हम तो है सिर्फ, सबकी यहाँ नफरत लायक।। आपके लायक नहीं हम, ना औरों के लायक। हम तो है सिर्फ, सबकी यहाँ नफरत लायक।।
हाँ, मैं साधारण सी बस इक तवायफ ही तो हूँ, उजले होते हुए भी कालिख में तुम्ही ने गिराया है, मग़र ये... हाँ, मैं साधारण सी बस इक तवायफ ही तो हूँ, उजले होते हुए भी कालिख में तुम्ही ने...