बेटे की चिट्ठी
बेटे की चिट्ठी
ख़ुशी के आंसू छलक पड़े
उसकी चिट्ठी पढ़ कर
ऐसा संतोष का आगमन हुआ
मनो सब कुछ पा लिया हो
छण भर के लिए ये नाजुक दिल
अपने बेटे की बचपन के कारनामो
की ओर मुझे खींच ले गया
चीठी में न था कोई सन्देश
न द्वेष और न कोई क्लेश
समाया था सिर्फ उसकी
प्यार वाली मीठी बातें
जो कभी जुबान न कह सकी
आशा का समां बंधा था
कुशलता की कामना करते हुए
मेरे अशरों को बहने से रोक दिए
माँ,कभी उदास न होना तुम
मेरी चिंता से अपना स्वास्थ
बिगाड़ना ना तुम
मैं जहाँ भी रहूं
जैसे भी रहूं
तेरा आशीर्वाद सर आँखों पर
रखे मेरे पूरा ख्याल
मेरा लाल जो दूर बस गया
आज कितना पास आ गया
यकाएक झोंका हवा का आया
चिट्ठी उड़ती चली गयी
गुलाब की खुस्बू बिखेरती चली गयी
मेरे हौंसले को बांधती हुई
ताज़ी नरम धुप दिखा गयी
चिट्टी पर सियाही की छोटी छोटी बुँदे
बेटे की कष्टों और दुखो का
एहसास करा रही थी
पर उसकी प्यार भरी सुन्दर लिखाई
ने सारे भ्रम फुर्सत से दूर कर दिए
कुछ उभरते अक्षरों ने ग़मों को
विश्वास में भर दिया
चिट्टी को गले लगाकर
चौखट पर बैठकर सोचने लगी
बेटे की पहली चिट्ठी ने मुझे
जीने के लिए लालायित कर दिया
कई बरस बीत गए उन लम्हो को
याद करते हुए,जीते हुए
आज भी डाकिये का
इंतज़ार करती हूँ
वही गुलाब की महक का
वही नरम धूप का!
